हिंदुस्तान,मोतिहारी के बदले तेवर व कलेवर से जिले के दुसरे बैनर वाले अखबारों में हडकंप मच गया है. बिहार की राजधानी पटना के बाद आबादी की लिहाज से सबसे बड़े जिले पूर्वी चंपारण में अख़बार का सर्कुलेशन 25000 से ऊपर है.
इसके मुकाबले प्रतिद्वंदी अख़बारों दैनिक जागरण,प्रभात खबर, राष्ट्रीय सहारा आदि का प्रसारण एक तिहाई भी नहीं है. जिले के अनुभवी खबरचियों की मानें तो कुछ वर्ष पहले यहाँ के प्रभारी संजय उपाध्याय के जाने के बाद अख़बार में उठा-पटक की स्थिति रही. इसका असर अख़बार में छपे कंटेंट पर भी पड़ा.
हालाँकि इसी बीच मुजफ्फरपुर यूनिट से सुमित सुमन व बेतिया के हरफन मौला पत्रकार अमिताभ रंजन के आने के बाद हालत कुछ सुधरे भी. पर इनके जाते ही स्थिति जस की तस हो गई.
फिर डैमेज कंट्रोल के लिए यूनिट से मनीष सिंह को भेजा गया. लेकिन स्वभाव से दब्बू होने व आपसी राजनीति के चलते कार्यालय कर्मियों पर इनका नियंत्रण ना के बराबर रह गया था.
अखबार की हालत परचा-पोस्टर की बन गई. इधर दो वर्षों तक खरामा-खरामा चलने के बाद अख़बार ने बेहतरीन कंटेंट की बदौलत फिर से पाठकों में धाक जमानी शुरू कर दी है.
सूत्रों की मानें तो अख़बार को इस नए मुकाम तक लाने में नए प्रभारी मनीष कुमार भारतीय का योगदान सराहनीय है. उन्होंने आते ही अन्दुरूनी राजनीति की शिकार टीम को पॉजिटिव कर नए सिरे से कसा. सरल भाषा व रोचक शैली में लिखी गई ख़बरों की उम्दा पैकेजिंग पर विशेष ध्यान दिया.
अख़बार की पंच लाइन ‘तरक्की को चाहिए नया नजरिया’ की तर्ज पर सकारात्मक व सरोकारी खबरों का फ्लो साफ-साफ दिखने लगा है. खासकर सिटी पेज का लुक मेट्रो स्तर का दिख रहा है. इसको लेकर पाठकों के भी अच्छे फीड बैक मिल रहे हैं.
sach-much manish bhartiya ke ane se hustan ki isthiti sudhar gayee hai.