कृष्णकांत
उदय प्रकाश जी को साहित्य अकादमी मिला था. मैंने उस खबर को जगह दिलाने की कोशिश की. ‘दुनिया के सबसे बड़े अखबार’ में मेरे सहकर्मी ने पूछा कि ये उदय प्रकाश कौन है? मुझे बेहद शर्म आई.
एक दिन एक और ने पूछा कि ये अमरकांत कौन हैं? आज हिंदी के अखबार और न्यूज चैनल खुशवंत सिंह को बहुत तवज्जो दे रहे हैं. बड़ा—बड़ा स्पेस. मैं खुशवंत सिंह को खुद पसंद करता हूं. उन्हें जगह मिलने की खुशी है. लेकिन यही हिंदी मीडिया के लोग हिंदी के बड़े लेखकों को क्यों नहीं जानते? जबकि ये ये हिंदी भाषी लोग हैं, जो अवधी, भोजपुरी के अलावा हिंदी ही जानते हैं, वह भी ज्यादातर बेहद कमजोर.
ये नील आर्मस्ट्रांग का भी ‘मजबूत हाथों वाला नीला आदमी’ अनुवाद करते हैं, ‘आई वाज गो’ टाइप अंग्रेजी बोलते हैं और अंग्रेजियत को सलाम करते हैं. साफ है कि यह सब अंग्रेजी के आतंक के कारण है. हमारी पत्रकार बिरादरी ने हमें यह समझने का बेहतर मौका दिया है कि सांस्कृतिक उपनिवेशवाद गहरे तक पैठकर भी दिखता नहीं और हमें कमजोर करता जाता है.
(स्रोत-एफबी)