बाबा राम-रहीम ही नहीं गुजरात के रमजान समा भी फिल्मों के जरिए देना चाहते हैं समाज को संदेश,देंगे कवरेज?

रमजान समा
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गुजरात के रमजान समा समाज को संदेश देने के लिए बना रहे हैं फिल्म

रमजान समा
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समाज में जागरूकता पैदा करने के लिए जरूरी नहीं कि करोड़ों रूपये की लागत से बाबा राम-रहीम की तरह फिल्म बनायी जाए. छोटे-छोटे बजट की फिल्म,लघु फिल्म और यूट्यूब पर जारी वीडियो के जरिए भी संदेश दिया जा सकता है.

गुजरात के एक छोटे से गाँव से ताल्लुक रखने वाले रमजान समा कुछ ऐसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं. आर्थिक दिक्कतों के बावजूद वे यूट्यूब फिल्म बनाने में लगे हैं.उनकी एक डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘आखिरी सांस’ नाम से यूट्यूब पर रिलीज भी हो चुकी है.ये जानते हुए भी कि इससे कुछ आर्थिक लाभ की संभावना बहुत कम है.बावजूद इसके अब दूसरी डाक्यूमेंट्री की तैयारी में भी वे जी जान से जुटे हैं.

इस डाक्यूमेंट्री फिल्म की कहानी एक ऐसे भिखाड़ी लड़के के इर्द-गिर्द घूमती है जो भीख माँगने के बावजूद पढाई-लिखाई करता है.परीक्षा में उसे 99% मार्क्स आते हैं और वह सुर्ख़ियों में छा जाता है. अमेरिका उसे अपने यहाँ पढाई करने का ऑफर देता है मगर अमेरिका जाने में अक्षम है.क्योंकि न तो उसके पास राशनकार्ड है और न कोई और डाक्यूमेंट…लेकिन फिर भी वो भारत सरकार का आभारी है कि उसे पढ़ने का कम-से-कम मौका तो मिला.आगे की कहानी आप रिलीज होने पर उनकी फिल्म में देख सकते हैं.रमजान समा का कहना है कि इससे देश के बच्चों और युवाओं को बहुत बड़ा मैसेज जाएगा.

आप सोंच रहे होंगे कि इस खबर का मकसद? खबर का मकसद ऐसे लोगों को प्रोत्साहन देना जो नेक इरादों से ऐसी रचनात्मकता करना चाहते है. ऐसी ख़बरों के लिए मेनस्ट्रीम मीडिया में कोई जगह नहीं होती. मीडिया खबर का उद्देश्य ऐसी ख़बरों को एक प्लेटफॉर्म मुहैया कराना है ताकि वैकल्पिक मीडिया मजबूती से खड़ा हो सके. आजतक समेत तमाम चैनल बाबा राम-रहीम की फिल्म के प्रचार में दिल खोलकर स्टोरी लुटा रहे हैं. क्या रमजान समा समेत तमाम दूसरे रचनात्मक लोगों के लिए भी मेनस्ट्रीम मीडिया ऐसे ही खड़ा रहेगा ? जवाब हम-आप सब जानते हैं?

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