-मनीष ठाकुर-
एनडीटीवी बैन अब अदालत के पाले में…..
दो कदम आगे फिर दो कदम पीछे के सरकारी दांव का असली खेल क्या है?
कल मैने एक लंबी पोस्ट डालकर कहा था कि एनडीटीवी को भारत की सबसे बड़ी अदालत से फरियाद करनी चाहिए। किसी सरकार की हैसियत कैेसे हो सकती है वो मीडिया हाउस को बैन कर दे। सवाल करने के नाम पर बैन का आरोप गढने वाली मीडिया के इस स्वयंभू संस्था के लिए ये आसान नहीं था लेकिन उसने जिगरा दिखाया है।
आसान नहीं था यह मैं सिर्फ इसलिए नहीं कह रहा की उनका अंदर से चेहरा बेहद दागदार है। जिस से नकाब हटना बांकि है। बल्कि इसलिए और ज्यादा क्योंकि आज जब प्रेस क्लब मे एनडीटीवी की और से सवाल पूछने की आजादी के नाम पर उनका प्रेस कांफ्रेस हुआ तो आश्चर्यजनक रुप से राष्ट्रीय टीवी मीडिया के लगभग किसी भी संस्था ने हिस्सा तक नहीं लिय़ा। एक्कका दूक्का को छोड के सब सब नदारद थे। यह अपने आप में पक्षकारों के लिए चिंतन का विषय है।
खैर…आज एनडीटीवी अदालत पहुंचा की इधर सरकार ने नौ नवंबर के बैन पर अंतरिम रोक लगा दी। मामला बेहद दिलचस्प है। तो क्या सरकार ने समर्पण कर दिया? क्या मोदी सरकार में मौजूद जनाधार विहीन लेकिन कानूनी दांवपेंच के माहिरj प्रभावशाली मंत्री ने चिंदबरम साहब को एक बार फिर दोस्ती का तौफा दे दिया? क्या मोदी सरकार डर गई कि अमृतसर में चोट खाया खिलाड़ी अदालत में अपनी ही सरकार को हरवा सकता है इसीलिए राहत दे दी जाए या दांव कुछ और है।….क्या जो कुछ हुआ वह इतना सामान्य है या अदालत में अब बहुत कुछ होना है।
जितना मुझे लंबे समय तक कोर्ट की रिपोर्टिग के आधार पर समझ में आता है उसके मुताबिक कल सुप्रीम कोर्ट से यह आदेश आता जो सरकार ने लिया। ऐसे में कुतर्क का एक माहौल बनता। अब सरकार के पास लंबी दलील का अवसर है कि बैन क्यों? हर पत्ते अदालत में खुलेंगें। यह भारतीय मीडिया के हक में है। मुझे लगता है इस पर लंबी सुनवाई कि गुंजाइस बनती है। खुदपर लगाम लगाने और नैतिक रुप से साख के बुनियाद पर खडे इस पेशे को किसी नियम कायदे में रख कर गरिमा दी जा सके इसके लिए भी यह जरुरी है। जरुरी है कि यह सच सामने आए कि इस मामले में सरकार की बदनियती थी या दाल में कुछ काला है। भारत की सबसे बडी अदालत के पास असीम शक्ति है देखिए आगे आगे होता है क्या?
(लेखक पत्रकार हैं)