500 और 2000 रु की नोटों को मोदी सरकार ने बाहर का रास्ता दिखाया। मोदी सरकार के इस फैसले की चारो तरफ तारीफ़ हो रही । किन्तु एक पक्ष तर्क के साथ आलोचना करने वाला भी है। लोकसत्ता के संपादक और जानेमाने पत्रकार गिरीश कुबेर इन्ही में से एक है।
गिरीश कुबेर ने आज विशेष संपादकीय में लिखा है कि मोदी सरकार का यह कदम थोड़ा राहत वाला लग रहा है। लेकिन इसके लिए उनका शुक्रिया अदा करना चाहिए। किन्तु इस फैसले से काला धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। हां इतना जरूर हुआ है कि आम लोगो की परेशानी जरूर बढ़ी है। दुनिया में किसी भी देश में नोटों को बंद करने और नई करंसी लाने से काला धन तथा भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है। कुबेर ने इस विशेष संपादकीय को ” अर्थभ्रान्ति ” ( भ्रम फैलाने वाला ) नाम दिया है।
गिरीश कुबेर ने इतिहास का सन्दर्भ देते हुए लिखा है कि तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई गुजरात से थे। उनके कार्यकाल में भी ऐसा साहसिक कदम उठाया गया था और उस वक्त तत्कालीन आरबीआई गवर्नर आईजी पटेल थे। इतफाक से आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात से है और आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल भी गुजरात से ताल्लुक रखते है।
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पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के इस फैसले से ना तो काले धन पर लगाम लगी और ना ही भ्रष्टाचार कम हुआ बल्कि उलटे दिन-ब -दिन इसका ग्राफ बढ़ता गया।
कुबेर ने आगे कहा है कि जिन लोगो के पास काला धन है वो अब सफ़ेद करने में सोना, चांदी, जमींन,खेती, फ्लैट, हिरे आदि आदि में इन्वेस्ट करेंगे। मोदी सरकार का यह फैसला महज भ्रम पैदा करने वाला है।
गौरतलब है कि गिरीश कुबेर जाने माने पत्रकार है। कई विषयो का माइक्रो और बखूबी विश्लेषण करते है। अन्तराष्ट्रीय स्तर की अर्थनीति बेहतर समझते है। वे संपादक के अलावा एक बेहतर अर्थशास्त्री भी है और देश दुनिया की के आर्थिक मसलों पर पैनी नजर रखते हैं।
-सुजीत ठमके-