वेद उनियाल
आज सुबह नवभारत टाइम्स का संपादकीय आलेख चौंकाने वाला था।
गिरीराज किशोरजी ने एक लेख लिखा। उनके शब्द क्या थे सीधे सीधे जायसवाल के लिए वोट मांग रहे थे। पढ़कर निराशा हुई ।
क्या थे उनके शब्द –
हार जीत की बात करना अपरिपक्व होगा।ष लेकिन लोग अऩुभव करने लगे हैं कि जायसवाल का परिवार कानपुर से 90 साल से जुड़ा है। यही बात रहमानी के बारे में कही जा सकती है। लेकिन जायसवाल हर हफ्ते दो दिन दो दिन आकर यहां के लोगों से मिलते रहे हैं। स्थानीयता कानुप के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
साहित्यकारों का सम्मान इसी वजह से गिर रहा है। इस तरह की घोषणाओं , अपीलों से कम से कम संपादकीय पेजों को बचाना चाहिए। आश्चर्य है कि इस तरह की पंक्तियां संपादकीय पेज पर पढ़ने को मिली। पाठक सजग होते हैं। वह समझ लेते हैं कौन सी बात क्यों लिखी जा रही है। उसका आशय क्या है।
(स्रोत-एफबी)