अभिषेक श्रीवास्तव
टीवी चैनलों में काम करने वाले और टीवी देखने वाले दोनों ही इस बात से वाकिफ़ हैं कि जब किसी ख़बर में किसी की बाइट आती है तो उसका नाम और परिचय नीचे दिखाना होता है। जब जनता से वॉक्स पॉप लिया जा रहा हो यानी ढेर सारे लोगों से एक साथ राय ली जा रही हो, तो ऐसी भीड़ पर यह कायदा उस तरह से लागू नहीं होता जैसा कि किसी एक ख़बर/पैकेज को पुष्ट करने वाली इकलौती बाइट के लिए ज़रूरी होता है।
यह ज्ञान इसलिए याद आ गया क्योंकि कुछ देर पहले फ़ोकस न्यूज़ पर रोहतक बलात्कार कांड की ख़बर देखते हुए मुझे एक बाइट में नाम और परिचय गायब मिला। घटना पर एक लंबा पैकेज था और बाइट सिर्फ एक ही थी, लेकिन वह पर्याप्त लंबी थी (अंदाज़न 15 से 20 सेकंड की)। संयोग से बोलने वाले चेहरे को मैं पहचान रहा था। यह व्यक्ति भिवानी में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य कॉमरेड ओमप्रकाश है, लेकिन कोई हलका-फुलका कामरेड नहीं है। इन्होंने सरकारी बैंक की मैनेजरी से वीआरएस लेकर पार्टी की होलटाइमरी शुरू की थी। फिलहाल वे स्टेट काउंसिल में भी हैं। हरियाणा चुनाव के वक्त भिवानी में कथित ”लव जिहाद” का एक मामला संघ की ओर से उछाला गया था, उस वक्त इस मामले का परदाफ़ाश करने में सीपीआइ की बड़ी भूमिका थी।
आज रोहतक और भिवानी में जघन्य बलात्कार कांड पर जो आंदोलन खड़ा हुआ है, उसमें भी कम्युनिस्ट पार्टी की बड़ी भूमिका है लेकिन टीवी को कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व से बड़ी दिक्कत है, जब तक चेहरा सेलिब्रिटी का न हो। यह बिलकुल संभव है कि रिपोर्टर ने बाइट देने वाले का नाम न पूछा हो, लेकिन यदि बाइट देने वाला भाजपा/कांग्रेस/आइएनएलडी आदि का कोई नेता होता, क्या तब भी चैनल ऐसी लापरवाही करता? इस बारे में चैनल के संपादक संजीव श्रीवास्तव को संज्ञान लेना चाहिए।
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