-अभय सिंह-
कल मैंने अपने लेख में मोदी को दूसरी बार नजरअंदाज किये जाने एवं ट्रम्प को टाइम्स पर्सन आफ द इयर बनाने की आशंका व्यक्त की थी जो सटीक साबित हुई।
रीडर्स पोल में मोदी सर्वाधिक 18%वोट पाकर ट्रम्प एवं ओबामा (7% वोट) से काफी आगे रहे एवं रीडर्स पोल भी जीत लिया ।
इसके बाद भी उन्हें नज़रन्दाज़ किया गया।अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के पूर्व ट्रम्प के बारे में दुष्प्रचार करने वाले ये बुद्धिजीवी मीडिया समूह,संपादक आज अपने पाप धोने के लिए ट्रम्प के आगे नतमस्तक होने पर मजबूर हो गए।
कल की खबर का लिंक-
मोदी के खिलाफ संपादकों की साजिश !
इस संदर्भ में मीडिया खबर पर प्रकाशित लेख :
मोदी को दरकिनार कर ट्रम्प को टाइम्स पर्सन आफ द इयर बनाने की तैयारी :
modi2014 के बाद दूसरी बार पीएम मोदी ने टाइम रीडर्स पोल बड़े अन्तर से जीत लिया है। उन्हें सबसे अधिक 18% वोट मिले जबकि ट्रम्प,ओबामा को 7% वोट मिले।यानी जनता की नजर में मोदी सबसे लोकप्रिय नेता हैं।लेकिन बुद्धिजीवी संपादको की नजर में उनको परखा जाना बाकी है।क्या इस बार भी वे मोदी को नजरअंदाज करेंगे या उनके साथ न्याय करेंगे।
पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के हर सर्वे में डोनाल्ड ट्रम्प की हार की भविष्यवाणी करने वाले मीडिया समूहों को उनकी जीत से गहरा सदमा लगा है।यानी मीडिया अमेरिकी जनता के मन को टटोलने में बुरी तरह से नाकाम रही।शायद ट्रम्प को खुश करने के लिए मोदी को फिर झटका देने की तैयारी कर ली गयी है ये चर्चा जोरों पर है।
जनता के दिलों में दस्तक देने वाले पीएम मोदी देश के ही नहीं दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक है।लेकिन कई प्रमुख़ मीडिया समूह टाइम्स, बीबीसी,सीएनएन को ये बात गले नहीं उतरती ।बीबीसी और कांग्रेस की नजदीकी किसी से छिपी नहीं है।सर्जिकल स्ट्राइक पर बीबीसी का रुख किसी पाकिस्तानी चैनल की तरह था।
लेकिन महंगे,एयरकंडीशन आफिस में बैठने वाले बुद्धिजीवी संपादको को मोदी जरा भी नहीं भाते।
2014 से अब तक भारत में बुद्धिजीवियों,कुछ मीडिया समूहों का नरेंद्र मोदी के प्रति दुराग्रह चरम पर है।
उनकी हर नीतियों की आलोचना करना परम कर्तव्य समझते हैं।मोदी को चैनलों, अखबारो,सोशल मीडिया पर अनगिनत भद्दी-2 गालियां देने के बाद भी सरकार को दोष देते है की उनकी अभिव्यक्ति की आजादी छीनी जा रही है।
जनमत की उपेक्षा करने वाले मीडिया समूह ट्रम्प प्रकरण से सबक लेते हुए मनगढंत ओपिनियन मेकर बनने की बजाय जनता के करीब जाने की कोशिश करें अन्यथा उनकी विश्वसनीयता पर संकट बरकरार रहेगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)