अभिषेक श्रीवास्तव,वरिष्ठ पत्रकार-
जिन्हें अगले दो दिन एग्जिट पोल की नौकरी नहीं करनी है, वे आज की रात लड़की ब्याह देने वाले बाप जैसे भाव में हैं जो विदा करने के बाद लड़की के भविष्य की चिंता, बड़ी जिम्मेदारी से मुक्ति और अतीत की यादों में डूब जाता है। चुनाव कवर करना लड़की ब्याहने जैसा काम है। ऐसे आयोजन में अक़सर कम अहम मेहमान उपेक्षित रह जाते हैं। चुनाव में भी जितना हम लिखते-छापते हैं, उससे कहीं ज्यादा अनकहा, अलिखा और अप्रकाशित रह जाता है।
अनकही कहानियां सबसे दिलचस्प होती हैं लेकिन संपादकों की दिलचस्पी उनमें सबसे कम होती है। लिहाजा ऐसी कहानियां या तो हमारी निजी डायरियों में बंद रह जाती हैं या फिर हार्ड डिस्क में पड़े-पड़े करप्ट हो जाती हैं। चुनाव जितना जटिल होता है, अनकही कहानियां उतनी ज़्यादा जमा होती जाती हैं।
यूपी का चुनाव वाकई जटिल रहा। एक-एक सीट का चुनाव। कोई सामान्यीकरण संभव नहीं। ऐसे में ग्राउंड पर गए लोगों के पास अजीबोगरीब तजुर्बों का ज़खीरा पड़ा होगा, ऐसा मैं मान कर चल रहा हूँ। अगले दो दिन खाली बैठे तमाम मित्रों से मेरी गुज़ारिश है कि 11 मार्च तक के समय का इस्तेमाल अनकही-अनछपी कहानियों को लिखने-कहने में करें। पढ़ने वाला भी समृद्ध होगा और आप भी संतुष्ट। मैं भी कोशिश करूंगा। पक्का। (सोशल मीडिया पर लिखी उनकी टिप्पणी)