अभिरंजन कुमार
दूरदर्शन ने अपनी बची-खुची जात गंवा दी। प्रतिपक्षी पार्टी होने के नाते कांग्रेस का मोदी-विरोध समझ में आता है, लेकिन दूरदर्शन ने किस अधिकार, कर्तव्य और नैतिकता के तहत मोदी का इंटरव्यू सेंसर किया?
इसलिए मोदी ने दूरदर्शन को लेकर जो सवाल उठाए हैं, वे मुझे सही लग रहे हैं, लेकिन अगर मोदी (बीजेपी) की सरकार बनती है, तो क्या दूरदर्शन स्वतंत्र होगा? क्या मोदी और बीजेपी ऐसी उदारता दिखा पाएंगे? हालांकि इसका फ़ैसला भविष्य ही कर सकता है, लेकिन फिलहाल मुझे इसपर संदेह है, क्योंकि मीडिया में जो भी प्रतिकूल दिखे, उसे “न्यूज़ ट्रेडर” की संज्ञा नहीं दे दी जाएगी- इसकी गारंटी अभी किसी ने दी नहीं है।
वैसे मोदी द्वारा प्रियंका के लिए “बेटी” शब्द के इस्तेमाल पर कांग्रेस और ख़ुद प्रियंका ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दी है, उससे उनकी “भाषाई, वैचारिक और सांस्कृतिक बैंकरप्सी” झलकती है। मोदी को ऐसे घेरोगे भाई? मैंने भी सुना है। उन्होंने प्रियंका को “बेटी समान” तो कहा ही नहीं। वे बार-बार “बेटी” शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन संदर्भ “सोनिया गांधी” हैं।
मज़ेदार बात यह भी है कि एक तरफ़ तो प्रियंका को अपने पिता के हत्यारों के लिए सहानुभूति है, दूसरी तरफ़ पिता की उम्र के एक व्यक्ति ने अगर “बेटी समान” कह भी दिया होता, तो कौन-सा उनके सभी दस्तावेजों में “प्रियंका वाड्रा D/O स्वर्गीय राजीव गांधी” की जगह “प्रियंका वाड्रा D/O नरेंद्र मोदी” दर्ज हो जाता! सबको मालूम है कि प्रियंका वाड्रा राजीव गांधी की ही बेटी हैं और इसी वजह से उनकी इतनी पूछ है, वरना कौन पूछता उन्हें?
चमत्कार से कारोबार करने वाले व्यवसायी रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी और चुनाव-प्रचार के लिए साड़ी पहनकर अमेठी और रायबरेली की गलियों की ख़ाक छानने वाली प्रियंका को भारतीय तहज़ीब का थोड़ा ज्ञान तो होना चाहिए। मुझे लगता है कि मीडिया प्रियंका को जितना स्पेस देता है, उतना वे डिज़र्व करती नहीं हैं। ज़बर्दस्ती मीडिया उनमें इंदिरा गांधी का अक्स ढूंढ़ने और उन्हें नेता बनाने की कोशिश करता रहता है।
प्रियंका गांधी को कांग्रेस अगर दस साल पहले लॉन्च करती, तो शायद वे दो कदम चल सकती थीं, लेकिन अब काफी देर हो चुकी है। सोनिया अगर उन्हें राहुल के फेल होने के बाद नेहरू-गांधी-वाड्रा परिवार की अंतिम उम्मीद के तौर पर प्रक्षेपित करने की योजना रखती हों, तो उन्हें यह समझना चाहिए कि वे रायबरेली और अमेठी में प्रचार करने तक ही ठीक हैं। उससे ज़्यादा उनका इस्तेमाल नहीं है, क्योंकि इस देश को जितना मैं समझता हूं, उसके मुताबिक प्रियंका की अब कहीं कोई अपील नहीं बची है।
सोनिया गांधी ने बेटे के मोह में प्रणब मुखर्जी को रास्ते से हटाकर कांग्रेस के एक पैर में कुल्हाड़ी मारी थी। अब अगर राहुल के बाद वे प्रियंका पर दांव खेलना चाहती होंगी, तो कांग्रेस के दूसरे पैर में भी कुल्हाड़ी मार देंगी। किसी को देखने के लिए भीड़ जुटना एक बात है और देश की तकदीर उसके हाथ में सौंप देना दूसरी बात। भीड़ तो ख़ूबसूरत अभिनेत्रियों के लिए भी जुट जाती है।
अगर इस देश को राहुल गांधी नहीं पच रहे हैं, तो प्रियंका वाड्रा भी कभी नहीं पचेंगी। मेरी इस इस बात को भविष्य के लिए सुरक्षित रख लें। टीवी चैनल्स उन्हें टीआरपी के लिए हाइप देते हैं। इससे जनता दिग्भ्रमित न हो। (स्रोत-एफबी)