आलोक कुमार
” तेजस्वी सम्मान खोते नहीं गोत्र बतला के ,
पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखला के ”
कल हिन्दी -साहित्य के ओज -पुरुष राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की जयंती थी …. हिन्दी – साहित्य की बात तो क्या भारत में साहित्य (किसी भाषा) की कोई भी चर्चा दिनकर जी की चर्चा के बिना अधूरी है …. अजीब विडम्बना है दिनकर जी की कृतियों पर दशकों पहले से विदेशों में शोध हो रहे हैं , अनेकों विदेशी विश्वविद्यालयों व शोध- संस्थानों में ‘दिनकर-चैपटर्स’ हैं लेकिन अपने ही देश और अपनी ही मिट्टी बिहार में दिनकर जी की याद लोगों को सिर्फ जयंती व पुण्य-तिथि पर आती है . दिनकर जी जैसे कालजयी सृजनकार को भी , जिसने दशकों पहले ये लिखा था , :
” तेजस्वी सम्मान खोते नहीं गोत्र बतला के ,
पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखला के .”
“जाति-जाति रटते , जिनकी पूंजी केवल पाखंड ,
मैं क्या जानूँ जाति ? जाति हैं ये मेरे भुजदंड .”
मृत्त्योपरांत आज जातिगत समीकरणों में ‘समेट’ लिया गया है . अपनी ही भूमि बिहार में राजनीतिज्ञों और कुत्सित मानसिकता वाले लोगों ने दिनकर जी की प्रासंगिकता केवल प्रतिमाओं और माल्यार्पण तक सीमित कर दी . चुनावों के दौर में दिनकर जी का पैतृक – गाँव सिमरिया खद्दरधारियों का तीर्थ बन जाता है लेकिन दिनकर का साहित्य कैसे पीढ़ी दर पीढ़ी तक पहुँचे इसकी परवाह करने वाला कोई नहीं है . दुःख तो तब होता है जब बिहार की ही युवा पीढ़ी दिनकर जी के बारे में पूछे जाने पर सवालिया नजरों से देखती है . दिनकर जी की रचनाओं का ‘तेज’ अगर ‘हम’ भावी -पीढ़ी तक पहुँचा पाए तो आने वाली पीढ़ियों का ‘तेज’ भी बढ़ेगा और एक ‘मनस्वी’ बिहार व भारत का निर्माण होगा .
यहाँ एक बात का जिक्र भी करना चाहूँगा जो मेरे द्वारा ऊपर कही गई बातों को स्वतः स्पष्ट व प्रमाणित करने में सहायक होंगी ” नीतीश जी की अगुवाई में राजधानी पटना में वर्षों से लिटरेचर -फेस्टिवल का आयोजन हो रहा है लेकिन हतप्रभ करने वाली बात ये है कि अब तक किसी भी फ़ेस्टिवल में दिनकर जी का जिक्र तक नहीं हुआ है ….ना ही किसी स्मारिका या पोस्टर में दिनकर जी की तस्वीर प्रकाशित की गई . देश व प्रदेश में कोई भी साहित्यिक आयोजन हो और उसमें दिनकर जी की चर्चा ना हो तो क्या ऐसे आयोजनों के औचित्य पर सवालिया निशान खड़े नहीं होंगे ? दिनकर जी का व्यक्तित्व व कृतित्व किसी सम्मान या जिक्र का मोहताज नहीं है अपितु दिनकर जी का जिक्र मात्र देश व बिहार के लिए सम्मान की बात है .
ये क्या हमारी (ऐसे लोगों की) घटिया सोच को नहीं दर्शाता है जो जातिगत मानसिकता से ऊपर कभी उठ ही नहीं सकी और दिनकर जी जैसे मनीषी को भी दायरों में सीमित कर दिया ?
कोटिशः नमन सरस्वती – पुत्र को …….
आलोक कुमार ,
(वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक ),
पटना .