नदीम एस अख्तर
संदर्भ – व्यंग्य का नया मैदान सोशल मीडिया – दिलीप मंडल
दिलीप मंडल जी कह रहे हैं कि जब वे इंडिया टुडे के सम्पादक थे, तो उन्होंने अपने ‘विशेषाधिकार’ का इस्तेमाल करके उसमें व्यंग्य के कॉलम को धीरे-धीरे बंद कर दिया. इस बारे में उन्होंने अपनी वॉल पर लिखा है….
—-इंडिया टुडे में संपादकी के दौरान एक फैसला करते हुए मैंने व्यंग्य यानी सटायर का नियमित कॉलम पहले कम और फिर बंद करा दिया था. जबकि व्यंग्य मेरी प्रिय विधा है.
जानते हैं क्यों?
सोशल मीडिया में अब ऐसा जोरदार और धारदार व्यंग्य हर घंटे क्विंटल के भाव आ रहा है कि साप्ताहिक तौर पर इसकी कोई जरूरत ही नहीं रही. कोई घटना हुई नहीं कि सोशल मीडिया पर चुटकी लेता सटायर हाजिर.
यह देश दरअसल समस्याओं, तकलीफों और विद्रूप को हास्य-व्यंग्य में बदल देने वाला देश है. कोई भी महाबली इससे बच नहीं सकता. जिसे भ्रम है कि वह महान है, उसकी खिल्ली पान दुकानों पर खूब उड़ती है….नए वाले महाबली के बदनाम सूट पर बच्चे चुटकुले बनाते हैं. मिनटों में मूर्तियां खंड-खंड हो जाती है.
व्यंग्य का नया मैदान सोशल मीडिया है. इस विधा को यही शोभा पाना है.
किसी को छोड़ना नहीं दोस्तो! —–
लेकिन मैं दिलीप जी की बातों से सहमत नहीं. मैंने इसका जवाब उनकी वॉल पर दिया है.
——-आपसे पूरी तरह असहमत Dilip C Mandal जी. सोशल मीडिया पर आ रहे व्यंग्य की तुलना आप -इंडिया टुडे- में छपने वाले व्यंग्य से नहीं कर सकते. और व्यंग्य की समझ भी बहुत सब्जेक्टिव है. जो आपको व्यंग्य लगेगा, हो सकता है कि किसी और को कूड़ा लेखन लगे.
सोशल मीडिया में जिसे आप व्यंग्य कह रहे हैं, वो हास-उपहास-परिहास से कहीं आगे की चीज है. हो सकता है कि किसी तथाकथित -दलित दर्शन व्यंग्य- पर आप आहत महसूस करें लेकिन लिखने वाले के लिए तो वह व्यंग्य भर है.
अखबारों और पत्रिकाओं में छपने वाले व्यंग्य को सोशल मीडिया के -व्यंग्य- के समानान्तर नहीं देखा जा सकता. वहां सम्पादक और अनेक जिम्मेदार लोगों की नजर से गुजरकर वह व्यंग्य छपता है, उसमें जिम्मेदारी का भाव होता है, वजन होता है. और सोशल मीडिया का व्यंग्य मर्यादा की किसी भी सीमा को पलभर में तोड़ सकता है, वह तुरंत डिलीट हो सकता है, पेज-प्रोफाइल तक चुटकी में हटाए जा सकते हैं, यह क्षणभंगुर होता है.
आपने इंडिया टुडे में व्यंग्य का कॉलम बंद किया होगा, वह आपका विशेषाधिकार था. मैं सम्पादक रहता तो व्यंग्य के कॉलम को और समृद्ध करता. इसकी देश को और यहां के जनमानस को जरूरत है. बहुत सख्त जरूरत है जनाब.———
क्या आप सम्पादक के लायक हैं दिलीप मंडल ?
मैनेजिंग एडिटर “मैनेजर’ जैसा पद होता है.
इंडिया टुडे का कुड़ा ही किया.
व्यंग्य बंद करके ऐसे बघार रहे हैं, जैसे बब्बर शेर की मार ली हो.
अपने आपको बनता बहुत है !
दिलीप मंडल ने बिलकुल सही कहा बिकाऊ मीडिया से बढ़िया है सोशल मीडिया उस कूड़े को बंद होना ही चाहिए