नोटबंदी : नरेन्द्र मोदी का वाजिब सवाल

शारदा चिटफंड घोटाले और टिकट के लिए थैलियों का जिक्र करके प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे नेताओं की नीयत पर सवाल उठा दिए हैं। मोदी ने अपने पूरे भाषण में किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन शब्दबाण लक्ष्य को भेदने वाले छोड़े। उल्लेखनीय है कि नोटबंदी के खिलाफ सबसे अधिक मुखर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। वह इस मसले पर विपक्ष को एकजुट करने में बड़ी सक्रियता से जुटी हैं। उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल का साथ भी मिल गया है। बहरहाल, प्रधानमंत्री ने किसी लोहार की तरह ममता बनर्जी की नैतिकता पर चोट की है।

लोकेन्द्र सिंह
लेखक – लोकेन्द्र सिंह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगरा में परिवर्तन रैली को जिस अंदाज में संबोधित किया है, उसे दो तरह से देखा जा सकता है। एक, उन्होंने विपक्ष पर करारा हमला बोला है। दो, नोटबंदी पर सरकार और प्रधानमंत्री को घेरने के लिए हाथ-पैर मार रहे विपक्ष से प्रधानमंत्री ने सख्त सवाल पूछ लिया है। ऐसा सवाल जिसका सीधा उत्तर विपक्ष दे नहीं सकता। नोटबंदी का विरोध कर रहे नेताओं की ओर प्रधानमंत्री मोदी ने नागफनी-सा सवाल उछाल दिया है, जो निश्चित तौर पर उन्हें लहूलुहान करेगा। उन्होंने पूछ लिया कि यह कदम कालेधन वालों के खिलाफ उठाया गया है, फिर आपको परेशानी क्यों हो रही है? यकीनन प्रधानमंत्री का यह सवाल वाजिब है, क्योंकि परेशानी उठा रही आम जनता को भी यह समझ नहीं आ रहा है कि विपक्ष ने आखिर हाय-तौबा किस बात के लिए मचा रखी है? क्या विपक्ष नहीं चाहता कि कालेधन के खिलाफ कार्रवाई हो? क्या विपक्ष नहीं चाहता कि जाली मुद्रा को खत्म किया जाए? आखिर विपक्ष की मंशा क्या है? वह क्यों चाहता है कि नोटबंदी का निर्णय वापस लिया जाए और फिर से 500 और 1000 के पुराने नोट चलन में आएं? प्रधानमंत्री के तर्कसंगत सवाल से विपक्ष कठघरे में खड़े किसी अपराधी से कम नजर नहीं आ रहा है।

शारदा चिटफंड घोटाले और टिकट के लिए थैलियों का जिक्र करके प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे नेताओं की नीयत पर सवाल उठा दिए हैं। मोदी ने अपने पूरे भाषण में किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन शब्दबाण लक्ष्य को भेदने वाले छोड़े। उल्लेखनीय है कि नोटबंदी के खिलाफ सबसे अधिक मुखर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। वह इस मसले पर विपक्ष को एकजुट करने में बड़ी सक्रियता से जुटी हैं। उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल का साथ भी मिल गया है। बहरहाल, प्रधानमंत्री ने किसी लोहार की तरह ममता बनर्जी की नैतिकता पर चोट की है। उन्होंने साफ-साफ कह दिया- ‘कैसे-कैसे लोग उन पर सवाल उठा रहे हैं, जिन्होंने नेताओं के दम पर चिटफंड में पैसे लगाए। चिटफंड के कारण सैकड़ों परिवारों को आत्महत्या करनी पड़ी। हमने चिटफंड वालों को सजा दी है। चिटफंड का उनका पूरा धन चला गया है।’ शारदा चिटफंड घोटाले में ममता बनर्जी के कई मंत्रियों के नाम सामने आए थे और कई मंत्री तो जेल भी गए। खैर, जो राज्य (पश्चिम बंगाल) जाली मुद्रा के लिए सबसे अधिक कुख्यात है, उसी राज्य की मुख्यमंत्री जाली मुद्रा के अवैध कारोबार को समाप्त करने के कदम का स्वागत करने की जगह उसका विरोध कर रही हैं। क्या यह पर्याप्त कारण नहीं है कि ममता बनर्जी की नीयत पर शक किया जाए? उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी बसपा प्रमुख मायावती के विरोध को भी प्रधानमंत्री ने सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते थे, विधायक/सांसद बनना है तो इतने रुपये लाओ। थैलियों में नोट भर-भरकर रखे थे, उन नोटों का क्या हुआ? देश में यह खेल बंद होना चाहिए, इसलिए हमने कोशिश की है कि गरीबों को हक मिले, मध्यम वर्ग का शोषण मिटे। कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों को भी वह सवालों के दायरे में लाए, क्योंकि सबकुछ जानते हुए भी कांग्रेस ने कुर्सी जाने के डर से जनहित में बड़ा निर्णय नहीं लिया। बहरहाल, प्रधानमंत्री ने संकेत की भाषा में तर्क के आधार जनता को संदेश दे दिया कि नोटबंदी का विरोध कर रहे नेताओं की तिजोरियों में कालाधन पड़ा है। जनता की परेशानी को अपनी ढाल बनाकर वह अपने कालेधन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। वास्तव में उन्हें आम आदमी की परवाह नहीं, बल्कि अपने धन की चिंता है।

राजनीति में शतरंज की बिसात बिछाकर बैठे नरेन्द्र मोदी की चालों को इस समय देखें, तब साफ दिखाई देता है कि उनका लक्ष्य क्या है? अपनी एक चाल से वह कई लक्ष्य साधते हैं। अब देखिए, नोटबंदी के निर्णय से उन्होंने कालेधन, जालीनोट और आतंकियों की फंडिंग पर चोट की है। खैर, सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विरोधियों को ‘शह-मात’ में उलझाकर अपना दायरा बढ़ा रहे हैं। इस भाषण में उन्होंने इस बात के स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह भारतीय जनता पार्टी और अपनी सरकार को गरीब और मध्यम वर्ग के नजदीक ले जाना चाहते हैं। वह भाजपा को ‘बनियों की पार्टी’ छवि से मुक्त करना चाहते हैं। यहाँ बनियों से आशय किसी जाति विशेष से नहीं, बल्कि सम्पन्न वर्ग से है। भाजपा पर यह तोहमत लगाई जाती है कि वह अमीरों की पार्टी है। अंबानी और अडाणी, प्रधानमंत्री मोदी के दोस्त हैं। इसीलिए विपक्ष यह भ्रम फैलाने का प्रयास कर रहा है कि नोटबंदी का निर्णय लेकर नरेन्द्र मोदी ने देश के गरीबों को बैंक और एटीएम के सामने कतार में खड़ा कर दिया है, जबकि अमीर अपने घरों में आराम से बैठे हैं। प्रधानमंत्री भली प्रकार समझते हैं कि भाजपा को अपना दायरा बढ़ाने के लिए इस झूठी छाप से बाहर निकलना होगा। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी खुलकर कहते हैं- ‘नोटबंदी के निर्णय में सबसे ज्यादा आशीर्वाद गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों ने दिया है, जिन्हें मैं सिर झुकाकर नमन करता हूँ।’ अपने भाषण में उन्होंने यह भी कहा कि गरीबों का हक मारने वालों को उन्होंने कड़ा दण्ड दिया है। अमीरों की तिजोरी से निकलकर बैंक में आए धन को गरीबों और जरूरतमंदों को उपलब्ध कराया जाएगा। भले ही मोदी विरोधी यह स्वीकार न करें, लेकिन सच यही है कि नोटबंदी के निर्णय का सबसे अधिक स्वागत इसी गरीब और मध्यम वर्ग ने किया है, जो नोट बदलवाने के लिए कतार में खड़ा है। अब तक आए ज्यादातर सर्वेक्षण भी इस बात की हामी भरते हैं कि तकरीबन 85 प्रतिशत जनता कष्ट उठाकर भी इस निर्णय के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ है। जनता का यह समर्थन इसलिए है, क्योंकि मोदी उसे यह समझाने में सफल रहे हैं कि यह सरकार गरीबों और मध्यम वर्ग की सरकार है। इस परिवर्तन रैली में भी मोदी ने प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का शुभारम्भ किया, जो इसी वर्ग को समर्पित है। बहरहाल, यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि जनता की भावनाओं और आकाक्षांओं को समझने में नरेन्द्र मोदी का मुकाबला विपक्ष का कोई भी नेता नहीं कर पा रहा है। यदि ऐसा होता, तब नोटबंदी का विरोध करने के लिए विपक्षी नेताओं को कुतर्क ढूंढकर लाने की जरूरत नहीं पड़ती। नोटबंदी के मुद्दे पर विपक्ष पूरी तरह चूक गया है। जबकि प्रधानमंत्री मोदी भारत के बहुसंख्यक वर्ग (गरीब एवं मध्यम वर्ग) में अपनी पैठ को मजबूत बनाते जा रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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