-पंकज श्रीवास्तव,वरिष्ठ पत्रकार-
नोटबंदी के 34 दिन में 35 फीसदी नौकरियों गईं..! मंदी की आहट तेज़ ! यह आॅल इंडिया मैन्यूफैक्चर्रस आॅर्गेनाइज़ेशन का आँकड़ा है !
ऐसी हालत में कंपनियाँ विज्ञापन बजट सबसे पहले घटाएँगी यानी इसी के दम पर चलने वाले चैनलों के कर्मचारियों के बुरे दिनों का अंदेशा है ! भक्त टीवी पत्रकारों से निवेदन है कि भगवान से अपनी सेवा की सुरक्षा का क़ानूनी जतन करा लें, वरना मालिक लोग बूढ़ा जोकर समझ कर सर्कस से बाहर फेंकने में रियायत नहीं करेंगे.!
भक्त पत्रकार जिस नोटबंदी के गुण गा रहे हैं, उसी का हवाला देकर हिंदुस्तान ने कई संस्करण बंद कर दर्जनों पत्रकारों को सड़क पर ला दिया है..एबीपी से भी अच्छी खबर नहीं है….! टाइम्स ऑफ इंडिया के मालिक विनीत जैन ने हिंदुस्तान के छह संस्करणों को बंद करने को जायज़ ठहराया है। वजह उन्होंने भी नोटबंदी बताई है। यानी आने वाले दिनों में टाइम्स मे भी क़हर बरपेगा।
लेकिन प्रिंट से ज़्यादा टीवी वालों को चिंता करने की ज़रूरत है। प्रिंट के पत्रकारों को तो क़ानूनी सुरक्षा हासिल है। वे लड़ेंगे तो जीतेंगे। जीतते रहे हैं। पर टीवी या डिजिटल पत्रकारों को यह सुविधा नहीं है।
मित्रो, इसलिए बेहतर है कि समय रहते संगठित होकर दबाव बनाओ कि श्रमजीवी पत्रकार एक्ट में टीवी और डिजिटल पत्रकारों को शामिल किया जाए..!
संपादकों के चक्कर में मत पड़ना, वे दो तीन पीढ़ी का हिसाब बना चुके हैं…! वे मोदी जी के साथ चाहे जितनी सेल्फ़ी खिंचवाएँ या नज़दीक होने का दावा करें, पत्रकारों की सेवा सुरक्षा के मसले पर चूँ न करेंगे। उल्टा, मालिक से काॅस्ट कटिंग का हुक़्म पाते ही कसाई बन जाएँगे । उनके संपादक बने रहने की यही शर्त है !
हाँ, फुल टाइम नमो-नमो करना हो तो अलग बात है…इस हफ्ते एक बार फिर बगदादी को मार लेना ! ग़ैस खुल जाएगी। 12 घंटे कुर्सी पर बैठे रहने से यह समस्या यूँ भी बढ़ जाती है। काम के घंटे वगैरह से जुड़े क़ानून की आपको क्या याद दिलाना…!
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