विकास मिश्र,पत्रकार,आजतक @FB
दिल्ली विधानसभा चुनाव में क्या होगा, किसकी जीत होगी ये सवाल बड़ा है। सबकी अपनी-अपनी पसंद है, अपना अपना मतलब है। अपने अपने कयास हैं। लेकिन इस चुनाव में दो चीजें ऐसी हुई हैं, जिन पर मुझे नाज है। आईआईएमसी के मेरे बैच के सभी साथियों को भी नाज होना चाहिए। इस चुनाव में यूं तो नेताओं के कई इंटरव्यू हुए। लेकिन दो इंटरव्यू ऐसे हैं, जो लोगों को अरसे तक याद रहेंगे। पहला किरण बेदी का इंटरव्यू, जिसे हमारे मित्र रवीश कुमार ने किया। और दूसरा इंटरव्यू अरविंद केजरीवाल का, जिसे हमारी बैच की साथी संगीता तिवारी ने लिया।
पहले बात संगीता की (क्योंकि इसमें टुडे एलिमेंट है)। केजरीवाल का इंटरव्यू ज्यादा मुश्किल था, क्योंकि सियासत की दुनिया में दो साल बिताने के बाद वो पूरी तरह घाघ हो चुके हैं। भटकाना उन्हें अच्छी तरह आता है। उन्हें घेरना आसान नहीं था, लेकिन संगीता ने केजरीवाल को पूरी तरह अपने सवालों में फंसा दिया। केजरीवाल को बोलने का मौका खूब दिया, लेकिन केजरीवाल भटकते ही रह गए। सवालों के जवाब देने की बजाय मुद्दे को भटकाने में लगे रहे। बात चंदे और गणतंत्र दिवस की हुई तो केजरीवाल किरण बेदी पर आ गए। गोत्र और जाति को लेकर भी संगीता ने केजरीवाल की चूड़ी टाइट कर दी। आधे घंटे के इंटरव्यू में केजरीवाल कई बार बगलें झांकने के लिए मजबूर हो गए।
इससे पहले रवीश कुमार ने किरण बेदी का चलते-चलते इंटरव्यू लिया था। अपने मधुर अंदाज में पूछे गए सवालों में रवीश ने किरण बेदी को फंसा दिया। कई सवालों पर बोलती बंद हो गई। राजनीति में किरण बेदी का नौसिखियापन जाहिर हो गया।
हमारे इन दोनों दोस्तों ने इतने शानदार इंटरव्यू लेकर हमारे पूरे बैच और आईआईएमसी का मान बढ़ाया है, सही मायने में पत्रकारिता धर्म का पालन किया । अपने दोनों दोस्तों को मैं व्यक्तिगत रूप से बधाई देता हूं।
(आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों के कट्टर समर्थकों से अपील है कि मेरी इस पोस्ट को किसी पार्टी के समर्थन या विरोध के चश्मे से न देखें।)