एंकरिंग के नाम पर बेहद फूहड और मूर्खतापूर्ण सवाल किए जाने से चर्चा में आयी डीडी न्यूज की एंकर गहरे सदमे में हैं. करीब दो लाख की हिट्स मिली इसकी मूल वीडियो हटा दी गई है. सोशल मीडिया पर इस वीडियो को लेकर खासा मजाक उड़ाए जाने के बाद मेनस्ट्रीम मीडिया अब इस पूरे मामले को दूसरी ही एंगिल देने में लगा है जिसकी तासीर पूरी तरह इस एंकर के प्रति सहानुभूति पैदा करनी है.
इधर प्रसार भारती इस मामले पर कुछ इस तरह से पर्दा डालने के काम में जुटा है कि ये पार्ट टाइम एंकर हैं जिन्हें कि स्थायी के मुकाबले बहुत कम पैसे दिए जाते हैं ? ये कैसा तर्क है इसे प्रसार भारती के बूते की ही समझ है, अपने हिस्से ये बात कभी समझ नहीं आएगी कि अगर इन्हें भी ज्यादा पैसे दिए जाते तो ये गोवा के गवर्नर को गवर्नर ऑफ इंडिया नहीं बताती या फिर ऐसे शख्स से ये सवाल नहीं करतीं कि आप फिल्म देखते हैं जो असल में सिनेमा के बीच ही जाता आया है. अव्वल तो कि क्या किसी भी चैनल या संस्थान में इस बात की छूट दी जा सकती है कि अगर एंकर या रिपोर्टर वहां का स्थायी मीडियाकर्मी नहीं है तो ऐसी कोई भी हरकत कर सकता है ? एक बात दूसरी बात देखिए कि ये कितना बड़ा विरोधाभास है कि पार्टटाइम एंकर को एक ऐसे बेहद महत्वपूर्ण एसाइनमेंट पर भेजा जाता है जहां जाने के लिए सालों से स्थायी रहे मीडियाकर्मी जमकर हाथ-पैर मारते हैं. ऐसी एसाइनमेंट के लिए स्थायी मीडियाकर्मी को भी मौके नहीं मिलते..तो फिर पार्ट टाइम एंकर को क्यों ? क्या ये एक जरूरी सवाल नहीं है ?
और जब ये जरूरी सवाल बनता है तो उंगलियां सिर्फ एंकर/रिपोर्टर ने जो कुछ भी किया, सिर्फ उन पर उठकर नहीं रह जाती, इस पर भी सवाल उठते हैं कि आखिर प्रसार भारती के विभिन्न निकायों में चयन की प्रक्रिया का आधार क्या है ? इस एंकर की विषयों के प्रति कितनी समझ है, देश-दुनिया को लेकर क्या जानकारी है, ये तो आप सबने देख ही लिया..ये कोई तर्क नहीं है कि पार्टटाइम एंकर को कम पैसे मिलते हैं तो जानकारी भी कम रहेगी तो चल जाएगी. क्या ऑडिएंस को ये अलग से जानकारी दी जाती है कि कौन पार्टटाइम है, कैन कॉन्ट्रेक्ट बेसिस पर..या फिर इन मीडियाकर्मियों के माथे पर पट्टी लगायी जाती है ?
तो मामला बस दो ही रह जाता है- एक तो ये कि जिस तरह निजी मीडिया संस्थान खासकर महिलाओं के चयन में इस बात को लेकर बदनाम रहे हैं कि नॉलेज के बजाय रूप-रंग देखते हैं, दुर्भाग्य से दूरदर्शन में भी चयन का यही आधार अपनाया जाता है( इस मामले के आधार पर) या फिर भारी पैरवी से किसी को भी रख लिया जाता है. इस मामले में दूसरी बात ज्यादा सच इसलिए भी साबित नजर होती आती है क्योंकि पार्टटाइम एंकर को ऐसी जगह पर भेजा जाता है जहां कि दूरदर्शन के स्थायी मीडियाकर्मियों को भी भारी मशक्कत करनी पड़ती है. सवाल तो तब ये भी उठता है कि स्वयं दूरदर्शन के मनोरंजन कवर करनेवाले लोग तब कहां थे ? ये राष्ट्री फिल्म महोत्सव है जिसका कि दूरदर्शन के लिए सिनेमा के साथ-साथ नेशनलिटी का भी मामला है बल्कि ये कहीं ज्यादा है.
ऐसे में हम और आप इस एंकर का मजाक उड़ाकर, उपहास करके नक्की हो लेते हैं तो हम उस बड़े संदर्भ से अपने को बिल्कुल काटकर देख रहे हैं जिसमे प्रसार भारती के पूरे कामकाज सवालों के घेरे में आते हैं. आपको याद होगा पिछले दिनों भी दूरदर्शन के एक मीडियाकर्मी को तत्काल कार्यमुक्त किया गया था तो यही तर्क दिया गया कि ये वहां के स्थायी मीडियाकर्मी नहीं थे..क्या आपके मन में ये सवाल नहीं उठता कि जब सारे काम बल्कि काम में सारी गलतियां अस्थायी और पार्टटाइम के लोग ही करते हैं तो स्थायी मीडियाकर्मी कंचे खेलने के लिए रखे जाते हैं. ?