मनीराम शर्मा
मतदान का प्रश्न उठायें तो देश में लगभग 60प्रतिशत मतदान होता है और मोदीजी की सरकार को 25प्रतिशत से अधिक मत नहीं मिले हैं अर्थात वे 75प्रतिशत लोगों को पसंद नहीं हैं |यह तो इस देश का मतदान ढांचा ही ऐसा है कि अप्रिय लोग भी सत्ता पर काबिज हो जाते हैं | न्यायाधिपति काटजू ने कहा था कि देश की 90प्रतिशत जनता नासमझ है | विकल्प के अभाव में वह विवश भी है क्योंकि इस प्रशासनिक ढांचे और संविधान के अंतर्गत कोई उपचार उपलब्ध नहीं हैं | अरुणा राय, अरुंधती, मेधा पाटकर, अन्ना , केजरीवाल , बाबा रामदेव , किरण बेदी आदि कई लोगों ने प्रयास करके देख लिए हैं लेकिन शायद सफलता अभी भी कोसों दूर है |देश की राजनीति तो एक चूहेदानी हैं जिसमें चुपड़ी रोटी लगाकर चूहों को पकड़ा जाता है |
भारत की राजनीति में भाग लेना सबसे बड़ा अधर्म और चुनाव लड़ना नरक का टिकट बुक करवाना है |मुझे मोदीजी या अन्य किसी भी पार्टी से न तो लगाव है न पूर्वाग्रह क्योंकि मैं गैर राजनैतिक व्यक्ति हूँ तथा अन्य पार्टियों की पूर्ववर्ती सरकारों की कमियों की ओर भी समान रूप से ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करता रहा हूँ | देश की विकलांग न्याय व शासन व्यवस्था का जब तक पूरी तरह से सत्यानाश नहीं हो जाता तब तक कोई क्रांति भी नहीं होगी | यह कार्य हमने आदरणीय के हाथों में सौंप दिया है और शायद वे यह कार्य अपने शासन काल में अवश्य पूरा करके गुजरात के समान ही एक पूर्ण तानाशाही स्थापित कर देंगे| किन्तु सुधार तो तब तक नहीं होगा जब तक आम नागरिक ऐसी चर्चा में सक्रीय भागीदार नहीं बन जाता और यह अभ्यास कम से कम 20 वर्ष और लेगा| फिर भी जनता को निराशवादी नहीं होना चाहिए और न ही हवा के झोंके के साथ उड़ने वाला तिनका –बल्कि वास्तविकता में विश्वास कर रखना चाहिए |
वैसे तो पारदर्शिता और जनतंत्र के विकास के लिए यह आवश्यक है कि शासन की सफलताएं और विफलताएं दोनों को सार्वजनिक किया जाए किन्तु विफलताओं को सार्वजनिक नहीं किया जाता और सफलताओं पर भी मुल्लम्मा चढ़ाकर पेश किया जता है जिससे जनता के सामने वास्तविक तस्वीर कभी नहीं आ पाती है | सफलताओं के गुणगान तो समर्थक ही काफी कर देते हैं और सत्तासीन लोगों की विफलताओं का ज्ञान होना आवश्यक है ताकि उनमें सुधार के लिए जमीन तैयार की जा सके | सफलताओं के जिक्र से जनता को कोई लाभ भी नहीं बल्कि सत्तासीन पार्टी को ही लाभ हो सकता है | कार्य तो सत्तासीन ही कर सकते हैं अत: आलोचना भी उसी की होगी सत्ता से वंचित इस व्यवस्था में न तो कुछ कर सकते और न ही उनकी आलोचना से जनता को कोई लाभ होना है |यदि आम नागरिक गुणगान में अपनी सीमित ऊर्जा लगा दे तो फिर कमियों कि और ध्यान कैसे जाएगा|
जिस व्यक्ति ने अपने वरिष्ठ साथियों तक को दर किनार कर कर दिया वह आम नागरिक को साथ लेकर कैसे चल सकता है| जिसे प्रकाश नहीं अन्धेरा पसंद हो -जन संवाद नहीं एकाधिकार पसंद हो वह जनता का कोई भला कैसे कर सकता है | मोदीजी जहां एक और इ-गवर्नेंस की बातें करते हैं वहीँ आदरणीय के आने के बाद उनके कार्यालय के सारे इमेल आई डी जनता के लिए बंद कर दिए गए हैं और किसी भी अधिकारी का इमेल आई डी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है | शायद जल्द ही ये अपने सभी विभागों, मंत्रालयों, उपक्रमों और कार्यालयों की इमेल आई डी बंद करदें तो भी आश्चर्य नहीं करना चाहिए| जनता के लिए मात्र दो वेबसाइट /लिंक दिए गए हैं जिनके लिए सिर्फ 500 अक्षरों की सीमा है और वह भी आप 72 घंटे के बाद ही दूसरा सन्देश भेज सकते हैं |इस प्रकार मोदीजी ने चुनाव जीतते ही आम नागरिक से दूरी बढ़ा ली गयी और सिर्फ उनके व्यक्तिगत संपर्क वाले ही उनसे संपर्क कर सकते हैं और उनको तो विदेश यात्राओं के प्रतिक्षण सचित्र विवरण मिलते रहते हैं| यही मोदीजी के प्रजातंत्र का असली मोडल है |किसी कार्य में सफलता हमें तभी मिल सकती है जब उसे पूर्ण मनोयोग – मन, वचन एवं कर्म से किया जाए| किन्तु मोदीजी की इ-गवर्नस में तो इसका कोई तालमेल नजर नहीं आता | जब वे लिखे हुए पर ध्यान नहीं दें तो कैसे विश्वास किया जाए कि वे व्यक्तिगत मिलने पर दुःख दर्द सुनेगें | वैसे उमा भारती से मिलने गयी मेधा पाटकर को लौटते समय पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया था|जिस तेज गति से मोदीजी की छवि में सुधार हुआ है शायद उससे तेज गति से यह छवि धूमिल हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं |