ये आप भी कहां-कहां की बात सामने ले आते हैं छत्तीसगढ़ वालों..? आपके पूरे राज्य में टैम का एक भी बक्सा नहीं है.. किस मुंह से आप हाई टीआरपी वाले दिल्ली मुंबई की बराबरी करने चले आए..? आप भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों के बीच रह रहे हैं तो इसमें टीवी चैनलों का क्या कुसूर..?
आपके राज्य में इतनी बड़ी नक्सली समस्या है ही.. हमारे चैनलों के सूरमा स्ट्रिंगरों से फुटेज मंगवा कर आपके जंगलों का आंखों देखा हाल दिखा ही देते हैं.. नक्सलवाद ऐसा मुद्दा है जिसमें करोड़ों-अरबों की फंडिंग है.. पब्लिक नहीं तो मिनिस्टर साहब खुश हो ही जाते हैं.. कुछ सरकारी विज्ञापन भी मिल जाते हैं.. महानगरों की पब्लिक के लिये भी जंगल में मंगल टाइप शो हो जाता है.
अब भला आप बताएंगे कि ये 40-42 गरीब आदिवासी बच्चियों के शोषण और बलात्कार की खबर पर कौन ध्यान देगा..? वो भी सरकारी खर्चे पर चलने वाले आश्रम में पलने वाली बच्चियां..? पूरा देश वैसे ही देश के दिल यानी दिलवालों की दिल्ली में हुए हाई टीआरपी वाले बलात्कार मामले को मुद्दा बनाए हुए है.. अब अगर उन्हीं एक्सपर्ट से ऐसी ही दूसरी खबर पर बहस करवाएंगे तो पब्लिक ही मुद्दा रिपीट करने का आरोप लगाएगी या नहीं..? कोई हमारा शो सो कर भी नहीं देखेगा.. सब बोलेंगे ये मखमल में टाट का पैबंद लगा रहे हैं..
अब इसी सबजेक्ट से जुड़ा कोई नया ऐंगिल लाते, कोई हाई प्रोफाइल खबर होती.. मसलन किसी मिनिस्टर की बेटी का पर्स छिना.. किसी बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट की बीवी पर किसी पिकनिक स्पॉट में किसी ने फब्ती कस दी हो.. या फिर किसी महिला आईएएस या आईपीएस को किसी एमपी या एमएलए ने घूर कर देखा हो, तो भी खबर बन जाती.. आपके यहां न फिल्मस्टार हैं, न फैशन डिज़ाइनर और न मॉडल.. ऐसे में किसकी फुटेज दिखाएं, किस पर खबर बनाएं जो कोई देखे.. कुछ तो बताइए..?
(लेखक पत्रकार हैं और पूर्व में कई न्यूज़ चैनलों के साथ काम कर चुके हैं)