तारकेश कुमार ओझा
‘बटरिंग ‘ से ज्यादा कुछ नहीं चैनलों का महामंच…!!
क्या खबरों की दुनिया में भी कई ‘ उपेक्षित कोने ‘ हो सकते हैं। मीडिया का सूरतेहाल देख कर तो कुछ एेसा ही प्रतीत होता है। खबरों की भूख शांत करने औऱ देश- दुनिया की पल – पल की खबरों के मामले में अपडेट रहने के लिए घर पर होने के दौरान चैनलों को निहारते रहना आदत सी बन चुकी है और मजबूरी भी। लेकिन पता नहीं क्यों पिछले कुछ दिनों से मुझे चैनलों पर समाचार देखने – सुनने में बड़ी बोरियत सी महसूस होने लगी है। एक ही तरह की खबरें देख – सुन कर इन दिनों काफी बोर और परेशान हो जाता हूं। इसकी कई ठोस वजहें भी हैं। क्योंकि खबरों के मामले में संतुलन कतई नजर नहीं आता। वही राजधानी दिल्ली और आस – पास की खबरों का बार – बार महाडोज।
मैं जिस पश्चिम बंगाल में रहता हूं वहां के शारदा घोटाले ने सूबे की राजनीति में भूचाल सा ला दिया है। इससे बंगाल की शेरनी कही जाने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की हालत बेहद खराब है। कई हजार करोड़ रुपयों के इस महाघोटाले में अब तक सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का एक मंत्री और दो राज्यसभा सदस्य समेत राज्य पुलिस के एक रिटायर्ड डीजी को सीबीअाई ने गिरफ्तार किया है। जबकि कई सांसदों और विभिन्न क्षेत्रों के प्रभावशाली लोगों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है। चिटफंड घोटाला कहे जाने वाले इस मामले में असम पुलिस के एक रिटायर्ड डीजी ने आत्महत्या कर ली है। वहीं असम का एक प्रख्यात गायक सह अभिनेता तथा ओड़िशा राज्य में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल का एक सांसद तथा इसी पार्टी और भाजपा के एक – एक विधायक को भी सीबीअाई ने गिरफ्तार कर जेल भेजा है। इस घोटाले से प्रभावित लोगों में अब तक 83 ने आत्महत्या कर ली है। पश्चिम बंगाल से शुरू हो कर इस घोटाले ने अास – पास के कुल छह राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है। जिससे संबंधित सूबों की राजनीति भी बुरी तरह से प्रभावित है। लेकिन किसी चैनल ने अब तक इसकी सुध लेना भी जरूरी नहीं समझा।
कहना मुश्किल है कि इतने बड़े वर्ग को प्रभावित करने वाला इससे बड़ा घोटाला अब तक देश में कहीं हुआ है या नहीं। लेकिन इससे जुड़ी एक भी खबर किसी चैनल पर नजर नहीं आती। बहुत बड़ी घटना होने पर एकाध चैनल पर पट्टी दौड़ती जरूर दिखाई देती है। लेकिन उसमें भी गलत – सलत लिखा नजर आता है। अभी कुछ दिन पहले इस मामले में सीबीअाई ने राज्य के एक मंत्री को गिरफ्तार किया। लेकिन एक चैनल पर चल रही पट्टी में उसे सांसद बताया जाता रहा।
दूसरा सिरदर्द इन चैनलों के कथित महामंच का है। आत्मप्रवंचना की भंग हर किसी पर चढ़ी नजर आती है। एक चैनल पर इसके मालिक अक्सर नौजवानों की क्लास लेते रहते हैं कि भैया… जब हम इतनी दूर आ गए तो आप क्यों नहीं एेसी ऊंचाई हासिल कर सकते हो। दूसरे चैनल ने अपने एक कार्य़क्रम के कुछ साल होने पर नामी – गिरामी हस्तियों का पूरा जमावड़ा ही लगा दिया। जिसका कोई मतलब अपने पल्ले नहीं पड़ा। कोशिश शायद यही बताने की रही होगी कि देखो कितने बड़े – बड़े लोगों से अपनी छनती है। जनाब लोग एक बुलावे पर दौड़े चले आते हैं। अब दूसरे कहां चुप रहने वाले थे। बस लगा दिया महामंच।
आक्रामक अग्रिम प्रचार देख – सुन कर एेसा लगा कि शायद देश की महत्वपूर्ण समस्याओं पर कोई गंभीर चर्चा होगी। लेकिन नहीं। महामंच के नाम पर वही पेज थ्री कल्चर वाले नामी – गिरामी चमकते – दमकते चेहरों का जमावड़ा। यहां भी संदेश यही कि हस्ती फिल्मी दुनिया की हो या क्रिकेट जगत की। हमारा न्यौता कोई नहीं ठुकरा सकता। देखो सब हमसे किस तरह गलबहियां डाल कर बातें करते हैं। इस कथित महामंच पर बिग बी यानी अमिताभ बच्चन भी आए। अब किसी कार्यक्रम में बिग बी आएं और बाबूजी की कविताएं … पर बात न हो, यह हो नहीं हो सकता।
लिहाजा खूब बतकहीं हुई। लेकिन मन में सवाल उठा कि ये चैनल वाले कभी – कभार बाबूजी से इतर दूसरे कवियों और साहित्यकारों को भी याद कर लेते तो कितना अच्छा रहता। खैर अपने चाहने से क्या होता है। चैनल वाले दावे चाहे जितने करे, लेकिन उनके बहस – मुबाहिशे और कथित महामंच पता नहीं क्यों मुझे बटरिंग से ज्यादा कुछ नहीं लगते। जन सरोकार से जुड़े किसी विषय पर इससे स्तरीय बहस तो भाषाई चैनलों पर नजर आते हैं।
(लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हुए हैं)