दीपक शर्मा, पत्रकार, आजतक
हमारा हाल ज़माने से कुछ जुदा तो नहीं
इमरजेंसी का इन्डिया टुडे या बोफर्स काल का द हिंदू …या फिर धीरूभाई अंबानी के वक्त के रामनाथ गोयनका और अरुण शोरी …..ये वो मीडिया संगठन और पत्रकार हैं जिनकी राजनीतिक विचारधारा पर मतभेद हो सकते है लेकिन उनके जिगर और पत्रकारिता की रीड का इस दौर में कोई सानी नही. इनके शौर्य और यश के आगे मै नतमस्तक हूँ.
लेकिन आज के दौर में पत्रकारिता की गंगा उलटी बह रही है. राजनीति के रसातल में सरकती आज की पत्रकारिता या तो बिकी हुई है या किसी सोच की गिरवी है या फिर किसी ओछे मकसद से की जा रही है. ऐसे – ऐसे अखबार के संपादक है की अगर इनके हाईस्कूल और इण्टर की मार्कशीट सार्वजनिक कर दे तो आप उनके अखबार का इस्तेमाल टॉयलेट पेपर की जगह करने लगेंगे. ऐसे – ऐसे चैनल हेड हैं जिन्हें २०- २० साल की एंकर ने idiot box बना दिया है.
मित्रों अगर अर्नब गोस्वामी या एकाध पुरोधा को मै छोड़ दूं तो ये कड़वा सच यही है कि आज की नई पीढ़ी में एक भी संपादक यशस्वी नही है. ना जिगर है ..ना रीड ..ना सोच ना कोई कलात्मक खूबी. सिर्फ मालिकों के खास हैं या किसी बड़े नेता के एजेंट.
एक चिट् फंडिया चैनल के हेड ने मुझे फोन करके पुछा की दीपकजी क्या मेरी मुलाकात रंजित सिन्हा से करा सकते हैं ? मैंने कहा की मै रंजित सिन्हा के इतना करीब नही हूँ…वैसे भी सीबीआई डायरेक्टर से सीधे मिलवा देना आसान नही है . फोन रखने के बाद मुझे खुद पर ग्लानी हुई की क्यूँ नही इस संपादक को मैंने मुलाकात करवाने की बात पर ही झिडक दिया होता. उसकी हिम्मत कैसे हुई ऐसे बात करने की.
मित्रों ये चैनल हेड आजकल दिल्ली में रंजित सिन्हा का कोई दलाल ढूँढ रहे ताकि सीबीआई की जांच में फंसे चैनल के मालिक को बचाया जा सके.(can anybody help him..please do comment).
मित्रों मैंने दो दशक की पत्रकारिता में बडी इमानदारी से काम किया है लेकिन फिर भी एक चैनल हेड मुझसे दलाली करवाना चाह रहे थे. इस घटना से मुझे इस बात का एहसास हुआ की जो फेसबुक के दोस्त मुझे दलाल या आप का एजेंट कह कर गालियाँ दे रहे थे उनका कोई कसूर नही है . सच तो ये है की बाजार में बड़े बड़े संपादक भी इस दौर में मुझे और करीब करीब हर पत्रकार को दलाल मान ने लगे है.
(स्रोत-एफबी)