नई दिल्ली : भारतीय प्रेस परिषद के एक दल ने बिहार में नीतीश कुमार की सरकार पर आरोप लगाया है कि वह विज्ञापन देने के अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हुए प्रेस पर सरकार के ‘अघोषित मुखपत्र’ के तौर पर काम करने के लिए दबाव बना रही है। दल ने हालात की तुलना आपातकाल से की है।
प्रेस परिषद के दल ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘बिहार में निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता को सेंसरशिप का सामना करना पड़ रहा है जैसा हमारे देश में आपातकाल के दौरान देखा गया था। कुल मिलाकर पत्रकार घुटन महसूस कर रहे हैं और उनमें से अनेक अपनी बेबसी जता रहे हैं।’’ रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘आंदोलनों और जनता की चिंताओं से जुड़ी खबरों को अखबारों में जगह नहीं मिलती।’’ दल ने कहा कि मीडिया पर इस तरह का अप्रत्यक्ष नियंत्रण संविधान के अनुच्छेद 19 91) ए का उल्लंघन है।
प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू द्वारा बनाई गयी तीन सदस्यीय तथ्यान्वेषी समिति ने कहा है कि बिहार में अखबार सरकार के दबाव के चलते भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को कम तरजीह दे रहे हैं। दल ने मांग की है कि दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए मीडिया को विज्ञापन जारी करने के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी का गठन किया जाए।
प्रेस परिषद की समिति का कहना है कि बिहार में पूरा मीडिया उद्योग खासकर राज्य सरकार के विज्ञापनों पर निर्भर करता है क्योंकि औद्योगिक रूप से पिछड़ा होने के कारण यहां निजी इश्तहारों का टोटा रहता है।
रिपोर्ट में टीम ने कहा है कि उसने छोटे और मझोले अखबारों के प्रतिनिधियों तथा बड़े प्रकाशनों के संपादकों से मिलने के विशेष प्रयास किये। रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री की सैकड़ों गतिविधियों को बड़े अखबारों में प्रमुखता से छापा गया जो पत्रकारिता के मानकों पर न तो प्रासंगिक थीं और ना ही खबर लायक थीं।
रिपोर्ट के मुताबिक टीम के समक्ष पक्ष रखने वाले अनेक पत्रकारों ने इस चलन की भी शिकायत की कि अखबारों में प्रबंधन अनेक खबरें संपादकीय विभागों को भेजता है और खबरों के महत्व का ध्यान रखने के बजाय उन्हें छापने के लिए दबाव बनाता है। समिति ने कहा, ‘‘सरकारी विज्ञापनों का लाभ उठाने वाले अखबारों के प्रबंधन लाभकारी संस्थानों के प्रति शुक्रगुजार रहते हैं और उनकी नीतियों की तारीफ करते हैं।’’ समिति के अनुसार अनेक पत्रकारों ने टीम के सदस्यों को फोन करके इस संबंध में अपनी दिलचस्पी दिखाई लेकिन दबाव के चलते नाम नहीं जाहिर करने का भी अनुरोध किया।
रिपोर्ट के अनुसार अनेक पत्रकारों ने किसी कथित घोटाले से जुड़ी खबर के प्रकाशन के चलते वरिष्ठ दर्जे के पत्रकारों के स्थानांतरण का भी जिक्र किया। पीसीआई के दल ने अपनी रिपोर्ट में कुछ सिफारिशें भी की हैं। दल ने सुझाव दिया है कि बिहार सरकार को प्रदेश में निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए सकारात्मक माहौल बनाना चाहिए और पत्रकारों के खिलाफ लंबित सभी मामलों की समीक्षा एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग द्वारा की जानी चाहिए। समिति ने सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया है। प्रेस परिषद के दल ने राज्य सरकार विज्ञापन नीति, 2008 की समीक्षा करने की भी सिफारिश की है। (एजेंसी)