आसन्न बिहार विधानसभा चुनावों में अति-पिछ़ड़ी जातियों के मतदाता निश्चित तौर पर निर्णायक भूमिका में रहेंगे . द्रष्टवय है कि ९० के दशक से यहाँ जो भी राजनीतिक पार्टी चुनावों में आगे रही है , उसके वोट-बैंक में एक बड़ा हिस्सा अति-पिछ़ड़ी जातियों के मतदाताओं का रहा है. आज भी बिहार में कोई भी चुनावी समीकरण इन मतदाताओं को नजरअंदाज कर नहीं बन सकता है . इस बार जद (यू) से अलग होने के बाद भाजपा भी राजनीति के इसी समीकरण के सहारे सूबे की राजनीति का सिरमौर बनने की तैयारी कर रही है लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इसमें किस हद तक सफल हो पाती है . बिहार में सीटों की संख्या को विस्तार देने के लिए भाजपा के साथ -साथ राजद के रणनीतिकारों ने जो ‘खाका’ तैयार किया है, उसमें अति -पिछड़ों के समीकरण को प्रमुखता दी गई है.जीतन राम माँझी के प्रति भाजपा एवं लालू यादव के सॉफ्ट – टोन से ये साफ तौर पर झलकता भी है .
यहाँ यह भी हैरान करने वाला है कि बिहार में नरेंद्र मोदी का नाम आगे कर सियासी लाभ जुगाड़ने का जो यत्न हो रहा है, उसमें मोदी के ‘विकास -मॉडल’ को जगह नहीं दी जा रही है बल्कि उनके अति- पिछड़ा होने को ‘’भुनाने” की कोशिशें ज्यादा की जा रही हैं. दरअसल, भाजपा ने उसी समीकरण में सेंध लगाने की योजना बनाई है , जिसके सहारे नीतीश कुमार ने पूर्व में दलित वोट-बैंक में सेंधमारी करने में कामयाबी हासिल की थी .
इस बार के विधानसभा चुनावों में अगर भाजपा (एनडीए) या अन्य कोई भी राजनीतिक दल या गठबंधन अति-पिछड़ों को साधने में कुछ हद ( मेरे हिसाब अति-पिछड़े के २२ प्रतिशत मतों का ५० प्रतिशत ही ) तक भी सफल हो जाता है तो बिहार में नए सियासी समीकरण जरूर उभर कर आएंगे . भाजपाई अभी भी मोदी -लहर बरकरार रहने का दावा कर रहे हैं , ‘ लहर ‘ है या नहीं ये तो मैं नहीं कह सकता , ये ‘लहर ‘ मापने वाले लोग ही बता पाएंगे ? लेकिन समस्त बिहार के विधानसभा क्षेत्रों में मौजूद पत्रकार मित्रों , सूत्रों से मिल रही खबरों एवं आम जनता के साथ सीधे संवाद को अगर आधार मानें तो मोदी के नाम पर भाजपा की तरफ अति-पिछड़े मतदाताओं के रुझान के कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिल रहे हैं . हाँ …जीतन राम माँझी की तरफ अति-पिछड़ों / दलितों के रुझान के स्पष्ट संकेत जरूर मिल रहे हैं , यहाँ सबसे अहम ये होगा कि क्या यह रुझान / झुकाव मतदान के अंतिम चरण तक बरकरार रह पाता है या नहीं ? चन्द दिनों पहले मैं भी गया , नवादा , जहानाबाद व पटना के दोनों संसदीय क्षेत्र के भिन्न विधानसभा क्षेत्रों के अति-पिछड़ी / दलित जातियों के मतदाताओं से रूबरू था , उनका साफ तौर पर कहना था कि ” माँझी जी के साथ गलत तअ जरूर होलई (माँझी जी के साथ गलत तो जरूर हुआ )” . मैं ने जब उन लोगों से पूछा कि ” क्या आप लोग भाजपा को औरों से बेहतर विकल्प के तौर पे देखते हैं ?” तो उन लोगों ने दो टूक जवाब दिया ” हमनी भाजपा लागी बेदम न ही , हमनी मोदी जी के साथे लोकसभा चुनाव में हली लेकिन विधानसभा में भी उनखे साथ जईबई ई जरूरी न हई , एक बार माँझी जी के अजमावे में कऊन हरज हई ? (हम लोग भाजपा के लिए नहीं बेदम हैं हम लोग लोकसभा चुनाव में मोदी जी साथ थे लेकिन विधानसभा चुनाव में भी उनके साथ जाएँगे ये तय नहीं है , एक बार माँझी जी को आजमाने में क्या हर्ज है ?) .”
बिहार की राजनीति में मौजूदा हालात में तीन पहलूओं पर विधानसभा चुनावों के नतीजे काफी हद तक निर्भर करते हैं . पहला , यादव मतदाता (११ प्रतिशत) लालू के साथ मजबूती से खड़ा रह पाता है या नहीं , दूसरा , नीतीश के कुर्मी-कोयरी (७ प्रतिशत ) वोट-बैंक में भाजपा किस हद तक सेंधमारी कर पाती है एवं तीसरा ( मेरे हिसाब से सबसे मत्वपूर्ण ) , अति-पिछड़ा / दलित मतदाता ( २२ प्रतिशत ) के वोट – बैंक में से कौन कितना हासिल कर पाता है .
आज भाजपा नरेंद्र मोदी के नाम पर अति-पिछड़ा कार्ड खेलकर और माँझी के प्रति नरम रुख कायम रख कर इसी अति-पिछड़ा मतदाता के वोट – बैंक पर अपनी नजरें सबसे ज्यादा गड़ाए हुए है . यादवों को बड़े पैमाने पर लालू से अलग करना आसान नहीं है ( यादवों में कमोबेश ये बात पैठ बना चुकी है कि लालू यादव के साथ वो इस बार अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं ) और कुर्मी – कोयरी ( विशेषकर कुर्मी ) को नीतीश के विरुद्ध करना बहुत आसान नहीं है , हाँ ये जरूर है कि कुर्मी को अलग कर कोयरी मतों में सेंधमारी की जा सकती है . लिहाजा इस हालात में भाजपा के साथ अन्य दलों या किसी भी संभावित गठबंधन को को एक अच्छी बढ़त पाने के लिए अति-पिछड़ा मतदाताओं का एक प्रभावी हिस्सा अपनी तरफ खींचना ही होगा . विशेषकर भाजपा के रणनीतिकार इस दिशा में प्रयासरत दिख रहे हैं कि अगर यादव और कुर्मी भाजपा के साथ नहीं भी आते हैं , तो भी कम से कम अति -पिछ़ड़ों / दलित के ३०-३२ प्रतिशत मतदाताओं को ही अपने साथ किसी भी तरह लाया जाए . यही वजह है कि भाजपा नरेंद्र मोदी को लगातार सूबे में एक अति – पिछड़ा नेता के तौर पर प्रचारित कर अति-पिछड़े वोटरों को लुभाने का प्रयास कर रही है.
आलोक कुमार ,
वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक ,
पटना .