“बड़ी ” खबर क्या होती है? क्या उसे बार-बार ” बड़ा” कहने से उसका आकार वाकई इतना बढ़ जाता है। टीवी न्यूज पुनरावत्ति की शिकार बनती जा रही है।
उससे खबर की गंभीरता, उसका आकार और उसकी मह्त्ता बढ़े न बढ़े, वह खीज का रूप लेने लगती है।
खबर की कमी के बीच अलग तरह की किसी भी घटना का घट जाना और फिर उसे महाकाय बनाकर शब्दों की जुगाली करते जाना मीडिया के उत्तेजित होते स्वभाव पर मोहर लगाती है और उन सबके बीच जब राजनीतिक प्रवक्ता भी राग-विराग में शामिल हो जाते हैं तो कई बार न खबर छोटी रहती है न बड़ी, वो तो खुद ही कहीं खो जाती है.
(डॉ. वर्तिका नंदा के फेसबुक वॉल से)