बांग्लादेश एक बार फिर से बड़ी हिंसा की चपेट में है। प्रदर्शनकारियों ने हाल में ही में जमकर उत्पात मचाया तथा कई इमारतों को निशाना बनाया और आग के हवाले कर दिया।
दरअसल, शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद बांग्लादेश में लोगों का गुस्सा भड़का और उन्होंने ढाका की सड़कों पर जमकर प्रदर्शन किया। इस दौरान भीड़ के हिस्से ने बांग्लादेश के प्रमुख दैनिक प्रोथोम आलो अखबार की इमारत को आग के हवाले कर दिया।
इस दौरान किसी तरीके से बिल्डिंग के भीतर मौजूद पत्रकारों ने अपनी जान बचाई। अखबार के एडिटर ने कहा कि बदमाशों ने मीडिया हाउस में तोड़फोड़ की और आग लगा दी। इससे पत्रकारों को ऑफिस से भागना पड़ा और अखबार और उसके ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का पब्लिकेशन रुक गया।
इस घटना को लेकर बात करते हुए शरीफ ने कहा कि यह हमला कल देर रात हुआ जब पत्रकार अगले दिन के अखबार और ऑनलाइन कंटेंट पर काम कर रहे थे। आगे उन्होंने कहा कि लोगों में गुस्सा था और बदमाशों ने उस गुस्से को अखबारों को नुकसान पहुंचाने की तरफ मोड़ दिया। इसके कारण हमारे पत्रकार काफी डर गए और उन्हें ऑफिस से भागना पड़ा।
27 साल में पहली बार नहीं प्रिंट हुआ अखबार
अखबार के एडिटर ने बताया कि हमले के कारण, प्रोथोम आलो आज अपना प्रिंट एडिशन पब्लिश नहीं कर पाया, और इसका ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कल रात से ऑफलाइन है। आगे कहा कि 1998 में हमारी स्थापना के बाद से, 27 सालों में यह पहली बार है जब हम अपना अखबार पब्लिश नहीं कर पाए हैं। यह अखबारों के लिए सबसे काली रात है।
मामले की जांच की मांग
इस घटना की गंभीरता को देखते हुए एग्जीक्यूटिव एडिटर ने सरकार से उचित जांच करने, जिम्मेदार लोगों की पहचान करने और बदमाशों को न्याय के कटघरे में लाने का आग्रह किया। उन्होंने इस घटना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया।
अखबार के एडिटर ने बताया पत्रकारिता के लिए काली रात
इस घटना को उन्होंने देश में पत्रकारिता के लिए सबसे काली रात करार दिया। प्रोथोम आलो के एग्जीक्यूटिव एडिटर सज्जाद शरीफ ने कहा कि ढाका के कारवानबाजार में अखबार के ऑफिस में तोड़फोड़ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बांग्लादेश में समाचार मीडिया पर सीधा हमला था, जिससे 1998 में अपनी स्थापना के बाद से 27 साल के इतिहास में पहली बार अखबार को प्रिंट पब्लिकेशन रोकना पड़ा।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने बांग्लादेश में हुए स्थानीय अखबारों के दफ्तर में हमले पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा- मीडिया संस्थानों पर हमला नहीं है, बल्कि यह प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर सीधा प्रहार है।
थरूर ने डेली स्टार के संपादक महफूज अनाम और अन्य साहसी पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जाहिर की। उनका कहना है कि पत्रकारों को अपनी जान बचाने के लिए संदेश भेजने पड़ें, जबकि उनके दफ्तर जल रहे हों यह किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए बेहद खतरनाक संकेत है।
उन्होंने बताया कि बढ़ते सुरक्षा खतरों के चलते खुलना और राजशाही स्थित भारतीय सहायक उच्चायोगों में वीजा सेवाओं का निलंबन एक बड़ा झटका है। इसका सीधा असर छात्रों, मरीजों और परिवारों पर पड़ा है, जो भारत-बांग्लादेश के बीच सामान्य होती आवाजाही से राहत महसूस कर रहे थे।
बांग्लादेश में हुई यह हिंसा केवल कानून-व्यवस्था का सवाल नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र, प्रेस की स्वतंत्रता और आम नागरिकों की सुरक्षा से जुड़ा गंभीर मुद्दा बन चुकी है। मीडिया संस्थानों पर हमले किसी भी समाज के लिए खतरे की घंटी होते हैं। अब निगाहें बांग्लादेश सरकार पर हैं कि वह हालात को कैसे संभालती है और स्वतंत्र पत्रकारिता की सुरक्षा के लिए क्या ठोस कदम उठाती है।










