सुजीत ठमके
किसी मीडिया कर्मी को बेशक बेहतर कार्य के लिए अवार्ड देना चाहिए। इससे मीडिया कर्मी का हौसला बुलंद होता है। काम करने की ऊर्जा मिलती है। जोश से लबरेज होता है। कुछ चंद मीडिया कर्मी को जेन्युइन काम के अवार्ड मिलता है। ज्यादातर मीडिया कर्मी यो को उनके काम के लिए मिलने वाले अवार्ड ” सेटिंग एंड गेटिंग ” का अप्राकृतिक गठबंधन है। १० वर्ष पहले रामनाथ गोयनका अवार्ड मिलने पर मीडिया कर्मी गर्व महसूस करते थे। जिसको रामनाथ गोयनका अवार्ड दिया जाता था उनके प्रोफाइल को, स्टोरी को, रिलेवंसी, इम्पैक्ट, कंटेंट आदि आदि को ज्यूरी मेंबर कई पैरामीटर्स पर खंगालते थे, तराशते थे। लेकिन पिछले ५ वर्षो से इस अवार्ड को लेकर भी गंभीर सवाल उठने लगे। एशियन टेलीविजन वीवर्स के अवार्ड को लेकर भी गंभीर सवाल उठ रहे है । कई अग्रेजी, हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषा के संपादक, न्यूज़ प्रेजेंटर ने अपनी जान की बाजी लगाकर बेहतर काम किया है। उनके बगैर टीवी न्यूज़ चैनल अधूरे है। एशियन टेलीविजन वीवर्स के अवार्ड के सूची में जिन लोगो का नाम शुमार है उसमे से कुछ नाम विवादित है । ऐसेमे एशियन टेलीविजन वीवर्स अवार्ड को लेकर गंभीर और संगीन सवाल उठ रहे है। अगर जनता के वोटिंग से यह अवार्ड देने का तकाजा है तो जिन्होंने टीवी न्यूज़ को शिखर तक पहुंचा दिया वो नाम इस सूची से बाहर कैसे हुए। एशियन टेलीविजन वीवर्स अवार्ड देने के पीछे कई वो लोग तो शामिल नहीं जिन्हे अपनी दागदार छवि को बेदाग़ दिखाना है।
( सोर्स फेसबुक वाल )