वेद विलास उनियाल
1- किसी व्यक्ति के रातों रात राष्ट्रीय नेता बन जाने का जो हश्र हम देख रहे हैं , संजय सिंह , आशीष खेतान और आशुतोष आप उसका प्रतीक बने हो।
2- हमेशा नकचढ़ी जुबान, हर सवाल को टालने की कोशिश, हर सवाल से भागने की कोशिश, हर गलती दूसरों पर थोपने की कोशिश , आपने राजनीति को इतना ही समझा है।
3- बेशक आशुतोषजी आपके पिता ने आप पार्टी के खड़े होने जीतने का श्रेय पत्र लिखकर आपको दिया हो। लेकिन आप रातों रात राष्ट्रीय नेता बने हैं। अन्ना हजारे का आंदोलन में अरविंद केजरीवाल , मनीष सिसोदिया , कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, किरण बेदी जैसे लोगो ने अपनी भूमिका निभाई है। तब आप जैसे लोग कहीं नहीं थे। लेकिन दुनियादारी इतनी ज्यादा कि बिना किसी सामाजिक पृष्ठभूमि के राजनीतिक अनुभव के सांसद का टिकट भी ले लिया। सब कुछ तय करने लगे। किस तरह की बातें करते आप।
इसलिए हर सवाल पर आप लहराते हैं, हर सवाल पर उत्तेजित हो जाते हैं। माथे पर पसीना दिखता है। यह स्थिति उन नेताओं के साथ नहीं होती जो बहुत छोटे स्तर पर राजनीति सीख सीख कर बड़े होते हैं। राष्टीय नेता बनते हैं। आपको तो कम से कम टीवी के पर्दे पर देखा था, आशीष खेतान को भी इतना जानते हैं कि सुनियोजित किस्म के कास्टिंग करते रहे हैं। लेकिन ये शुक्रवार को जन्मा और शनिवार को नेता बना संजय सिंह कौन है। क्या पृष्ठभूमि है इनकी। कौन हैं ये। क्या सामाजिक काम रहे हैं इनके। आप लोग बहुत बेहुदे ढंग से लोगों से रुबरू होते हैं। मीडिया के नाम पर दिल्ली के पांच सात चुनींदा पत्रकारों की गोलबंदी करके आप पूरे मीडिया को नकारने की कोशिश करते हैं। यह और भी शर्मनाक है जबकि आप लंबे समय तक मीडिया में रहे हो। आपको हर सवाल पर सहज होना चाहिए । लेकिन आप मामूली सवालों पर भी उत्तेजित हो जाते हो।
राजनीति में जिस शैली को खत्म करने के लिए अन्नाे हजारे का महान आंदोलन था , लेकिन आप अक्सर अशिष्ट शैली में साथ टीवी के पर्दे पर कुछ कहते नजर आते हैं। न वाणी का संयम न सामान्य लिहाज। रातों रात मिली सफलता से चरम अहंकार के साथ।
3- किसान आत्महत्या कर रहा था और आप लोगों के भाषण चल रहे थे। ऊपर से आपका बेहुदा बयान कि अरविंद को अगली बार पेड़ में चढ़ने के लिए कहूंगा। क्या ऐसी स्थिति आएगी तो पेड़ पर चढ़ नहीं सकते हैं अरविंद। क्या इतने नाजुक कली है कि पेड़ को देखकर घबरा जाएं। कहां की सामंती सोच है। अमेरिका में एक मेयर गम बूट पहन कर बाढ़ में लोगों को बचाने निकल सकता है, अरविद केजरीवाल क्या किसी संकट आने पर पेड़ पर नहीं सकते। नहीं सुनी एक दास्तां कि एक जज किसी डूबते को बचाने के लिए नदी में कूद गए और उसे बचा कर लाए। क्या राजनीति के मिजाज ऐसे हैं कि आप व्यंग में इतनी बेहुदी बात कहो। राजनीति करने का शौक हैं। पर ढंग से बोलने का शौक नहीं है। जुबान में इतनी फिसलन क्यों। इस संवेदनशील मौके पर आपका यह शर्मनाक बयान।
4- किसान आत्महत्या कर रहा था। आप लोगों के चहरे हाव भाव से कहीं नहीं लगा कि इस संकट को आपने भांप लिया हो। या उसका अहसास कर लिया हो। यह राजनीतिक अपरिपक्वता ही थी। उस मंच पर अगर मधु लिमये , बीजु पटनायक, जार्ज फर्नाडीज हेमवती नदन बहुगुणा, जगजीवन राम, कर्पूरी ठाकुर जैसे नेता होते तो शायद उस किसान को बचा लिया जाता। स्थितियों से जूझना और उससे निपटना उन्हें आता था। छोटे छोटे अनुभवों के साथ वो बड़े नेता बने थे। पर दुर्भाग्य यह था कि आज जिस जगह एक किसान आत्महत्या कर रहा था, उसके बगल में ऐसे नेता थे जो बबूल थे पर उन्हें बरगद बना दिया गया। मंच पर संजय सिंह आशीष खेतान और आशुतोष आप थे । क्या अपेक्षा करते आपसे। केवल बयानबैाजी के अलावा और क्या सीखे हो आप।
5- बहुत हल्का तर्क है दिल्ली पुलिस पर सब कुछ मड़ देना। बेशक दिल्ली पुलिस की गलती हो। लेकिन आप लोगों की जिम्मेदारी क्या थी। क्या किया आप लोगों ने जानने के बाद कि किसान ने फंदा लगा लिया। भाषण जारी और शाम को प्रेस कांफ्रेस की तैयारी। क्या अन्ना हजारे के आंदोलन के यही सबक थे। या उसके यही परिणाम थे।
6- सच यही है कि आप लोगों ने इस घटना को बहुत हल्के में लिया। आप लोग महसूस नहीं कर पाए कि वो आत्महत्या भी कर सकता है। इसके बाद आगे भी लापरवाह तरीके से सब प्रक्रिया चली। बेशक आपका मुख्यमंत्री और मंत्री ब़डे होने के कारण मंच से नहीं उतर सकते थे। लेकिन क्या कुमार विश्वास. संजय सिंह आशुतोष ने दौड़ लगाई। कुछ जतन किए। या ये भी इतने बड़े हो गए थे कि मंच से आदेश ही दे सकते थे। नीचे उतरते तो छोटे हो जाते।
7- भाजपा और कांग्रेस क्या हैं लोगों को बार बार कहने की जरूरत नहीं है। पर आपसे उम्मीदें थी। लगता था कि राजनीति के स्वरूप को बदलने के लिए नए लोग आ गए हैं। पर आप लोगों के चंट सवाल जवाब। हर चीज को रहस्य बनाकर कहना। हर चीज पर गोल गोल बातें करना। दुख यही है कि अब लोग आंदोलन शब्द पर यकीन नहीं करेंगे । क्योंकि उसकी परिणिति आशीष खेतान और संजय सिंह हो जाते हैं।