अनुरंजन झा
आज फिर तकलीफ का एक दिन है .. आशुतोष का रोना थोड़ा अखर गया, जैसे मेधा कह रही थी कि उसके पिता सुसाइड नहीं कर सकते हैं वैसे ही हम जिस आशुतोष को जानते हैं वो रो नहीं सकते । भावुक इंसान हैं लेकिन मजबूत भी हैं.. लड़ने वाले हैं …थप्पड़ खाकर रिपोर्टिंग करने वाले हैं … झटके खाकर संभलने वाले हैं… सदमों से उबरने वाले रहे हैं…. अपनी शर्तों पर जीनेवाले और बहुत ही संवेदनशील रहे हैं आशुतोष …
कम से कम हम तो उसी आशुतोष को जानते हैं। लेकिन आज वो फफक कर रोए… ऐसा रोए कि सारे देश ने देखा… हाल के वर्षों में ऐसा किसी को रोते देश ने इस कदर नहीं देखा हो शायद। लेकिन क्या वाकई आशुतोष मेधा के दुख से दुखी होकर रोए… क्या आशु के वो पश्चाताप के आंसू थे। नहीं दरअसल आशुतोष अपनी गलतियों पर रो रहे थे। उनके मन में कई महीनों से जो तकलीफ थी वो उस बेटी के बहाने धारा में बह निकली। अपने मित्र और पार्टी के मुखिया को डिफेंड करते करते आशुतोष कहीं खो गए हैं ….
अरविंद केजरीवाल के कुकर्मों पर पर्दा डालते डालते आशुतोष थक गए हैं। देश की जनता को बरगलाने और धोखा देने वाली पार्टी का बोझ ढोते ढोते आशुतोष उकता गए हैं। आज आशुतोष अपने अंदर पुराने आशुतोष को तलाशते-तलाशते रो पड़े। शायद उन्हें यह अहसास होने लगा हो कि जो कुछ देश में और दिल्ली में लोगों ने उनके नेता से उम्मीद लगाई उसका बोझ वो नहीं उठा पा रहे.. . एक के बाद एक गलतियां करते जा रहे हैं। सालों पत्रकारिता करके जो छवि बनाई वो पार्टी को डिफेंड करने में, मुखिया का बचाव करने में दांव पर लगा दिया। अब क्या होगा.. प्रशांत भूषण औऱ योगेंद्र यादव जैसे लोगों की तारीफ करते नहीं अघाने वाले आशुतोष किस मुंह से उनको भला बुरा कह रह हैं। जो युवा पत्रकार हमें नजीर मानते थे वो हमसे ऐसे सवाल दागते हैं कि पसीना छूट जाए। जो नेता सामने टिक नहीं पाते थे वो डिबेट में हमारा मजाक उड़ाते हैं। यही सब सोचते सोचते आज आशुतोष थक गए शायद। फूट पड़े, रोए और खूब रोए ..
आशु अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, अभी भी देर नहीं हुई.. आप लौटिए .. न्यूज रूम लौटिए …. जहां गए हैं वो जगह आपके लिए नहीं है … कम से कम उस आशुतोष के लिए तो बिल्कुल नहीं जिन्हें हम जानते हैं …. नहीं तो रोते रहेंगे …. बार-बार रोएंगे …