दीपक शर्मा, पत्रकार, आजतक
प्याज की तरह एक एक परतें उतारते जाईये. आशु कहीं आपको मोदी के मुखालिफ दिखाई देंगे. कहीं अडवाणी के. कहीं कारपोरेट के तो कहीं कांग्रेस के. परत दर परत आशु का एक एक चेहरा सामने होगा. वो कहीं उपन्यासकार हैं कहीं वक्ता कहीं प्रवक्ता. कहीं रंगमंच का रंग है उनमे.. कहीं रोमांस का भाव.लेकिन आखरी परत में आशु में आपको ईमान मिलेगा. अंग्रेजी में इसे integrity है. सरकारी हिंदी में निष्ठा.
मित्रों मै गोपाल राय का इतिहास नही जानता. मै दिलीप पाण्डेय का इतिहास नही जानता. मुझे मनीष सिसोदिया की कोई खबर याद नही. मुझे शाजिया इल्मी का हुनर नही मालुम. लेकिन मै यह जानता हूँ कि आशु …”आप” के मंच पर बहुतों से ऊपर है. लोगों ने “आप” से पाया है ..आशु बहुत कुछ गँवा कर “आप’ में आये हैं. उन्होंने अंबानी के एक बड़े चैनल नेटवर्क के हेड की कुर्सी को ठोकर मारी है. उन्होंने पत्रकारिता का एक बड़ा कैरियर छोड़ा है. मित्रों , अरविन्द को देश ने २०११ में अन्ना के मंच से जाना …पर आशु दस साल पहले टीवी के स्टार बन चुके थे.
छोटी गाडी, सादे कपडे और घर में अडाप्ट किये गए आवारा और बीमार कुत्तों के बीच मैंने आशु को देखा है. कभी बिना प्रेस किया हुआ कुर्ता तो कभी पैरों में सस्ती सी चप्पलें. अगर स्क्रीन पर ना होते तो उनके हुलिए से ओहदे को भांपना मुश्किल होता.
मै उनकी तारीफ़ इसलिए नही कर रहा की मुझे उनसे कुछ माँगना है. मै उनकी तारीफ़ इसलिए कर रहा हूँ की वो बहुत कुछ गँवा के इस जोखिम भरे सफर में आये हैं. वो उम्र में हो सकता है मेरे आसपास हों पर शोहरत और ओहदे में बहुत बड़े हैं. फिर भी १३-१४ सालों के रिश्ते के चलते उन्हें एक सलाह दूँगा. राजनीति में आयें हैं तो स्वाभिमान तो पहले ही जैसा रखियेगा लेकिन संकोच अपने चरित्र से अब मिटा दे. आपको ..’आप” में आगे बढ़ना है.
ALL THE BEST.
FRIENDS IN BJP PLEASE TAKE THIS AS A PERSONAL POST. RESPECT MY PRIVACY.
(स्रोत-एफबी)
दीपक भाई, आशु के त्याग पर शक नहीं किया जा सकता लेकिन उन्हें जाना ही था तो बीएसपी में जाते …कांशीराम के बहुत अहसान हैं उनपर
जब आप सत्ता में है तो आप मे घुस गए, जब अन्ना आंदोलन चल रहा था तब क्यू नहीं आगे आए आशु?
जब आईबीएन के 300 पत्रकारों को नौकरी से निकाला था तब क्या साँप सूंघ गया था आशु को???
ashutosh sir jayse logo ka rajniti me aana shubh sanket hai aab jarur bharat sone ki chidiya banega
दीपक शर्मा जैसा पत्रकार इस तरह की मूर्खता-पूर्ण बात कर सकता है ! आश्चर्य है ! अरे , आशुतोष करोड़ों कमाने के बाद और कई कर्मचारियों के पेट पर लात मारने के बाद “आप” में आये हैं ! और बिना किसी के लालच के नहीं आये हैं और ना समाज-सेवा करने का शौक है , ऐसा रहता तो करोड़ों का लालच , दिल से पहले ही निकाल कर अब तक समाज-सेवा में ख्याति हासिल कर चुके होते ! टिकट का लालच उन्हें “आप” में लाया है ! चैनल हेड की अहमियत, लोकसभा के एक सदस्य जितनी नहीं होती श्रीमान !