‘आप’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता ‘आशुतोष’ टेलीविजन पत्रकारिता/एंकरिंग छोड़ राजनीति में आ चुके हैं. लेकिन अबतक उनका लहजा नहीं बदला है. रह-रहकर उनके अंदर का एंकर जाग उठता है और वे भूल जाते हैं कि अब वे टेलीविजन पर एंकर की हैसियत से नहीं बल्कि प्रवक्ता की हैसियत से है. यही वजह है कि ‘प्रवक्ता’ के रूप में ‘आशुतोष’ अबतक अपने आप को स्थापित नहीं कर पाए हैं. दर्शक भी इस बात को महसूस कर रहे हैं और उनकी सोशल मीडिया पर लगातार आलोचना हो रही है.
एक दर्शक सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी (20 January) एफबी पर लिखते हैं –
‘आई.बी.एन.-7 छोड़कर आआपा में आने के बाद आशुतोष जब पार्टी के प्रवक्ता के रूप में बोल रहे हैं तो उनकी भाषा में जो आक्रामकता, और कथ्य में जो अतार्किकता है वह विचलित करने वाली है। जिन सवालों का उत्तर नहीं दे पा रहे उन सवालों को पूछने वाले पर ही पिल पड़ रहे हैं। आज अर्नब को डिक्टेटर और किरन बेदी को मोदी का प्रवक्ता कह गये और उन्हें सबक सिखाने की धमकी तक दे गये। आआपा की सारी कमाई बहुत जल्दी लुट जाने वाली लगती है।’
दूसरी तरफ एक दूसरे दर्शक संतोष सिंह प्रतिक्रिया देते हुए एफबी पर लिखते हैं कि –
‘आज “आशुतोष” को सुनकर यह महसूस हुआ कि लोगो से सवाल पूछना कितना आसान होता है और उन्ही सवालों को जवाब देना कितना मुश्किल…योगेन्द्र यादव जी ने कोई ट्रेनिंग नही दी क्या?’
कुछ इसी तरह की बात आशुतोष के साथ पूर्व में काम कर चुके अनुभवी पत्रकार ‘हर्ष रंजन’ अपनी टिप्पणी में लिखते हैं –
‘आशुतोष, आजतक चैनेल के लॉंच से पहले , लंबे समय तक एंकरिंग और पैनेल डिस्कशन की प्रैक्टिस करते रहे। कई दफा मॉक प्रैक्टिस में मैं भी उनके साथ बैठा। तब आजतक डीडी पर प्रोग्राम मात्र होता था। बाद में नकवी साहब के नेतृत्व में 10-तक जैसे पॉयोनियर न्यूज़ कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने वर्च्अल सेट पर स्टैंडिंग एंकरिंग सीखी। खड़े हो कर एंकरिंग करने की शुरुआत कराने का श्रेय आजतक को ही जाता है। आशुतोष की जानकारी काफी है, उसके सामने मैं कुछ भी नहीं। लेकिन उस जानकारी को आर्टिकुलेट कैसे करें , ये उन्हें अब भी सीखना है। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर गुस्सा हो रहे हैं, रूस जा रहे हैं कि अब बोलूंगा ही नहीं।’
वहीं आईआईएमसी में अध्यापन कार्य कर रहे ‘नदीम एस.अख्तर’ आशुतोष पर टिप्पणी करते हुए अपने लेख में लिखते हैं –
‘पत्रकारिता की नौकरी छोड़कर -आप- में आए आशुतोष पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर कमाल नहीं कर पा रहे हैं. कभी वो कहने लगते हैं कि मैं भी एंकर रहा हूं, मैं भी पत्रकार रहा हूं सो ये जानता हूं-वो जानता हूं तो कभी अपनी भाव-भंगिमा रुठने वाली टाइप बना लेते हैं. Times Now पर अर्नव गोस्वामी के साथ बहस में तो उन्होंने Arnav Goswami को DICTATOR तक कह दिया. ये भी कहा कि आज Elite media के साथ बैठकर पहली बार मुझे एहसास हो रहा है. आदि-आदि. अंत में एक light note पर बहस खत्म करते हुए अर्नव ने कहा कि I thought Ashutosh will explode today. और फिर सब हंसे. आशुतोष भी.’
बात सही भी है. अपने एंकरिंग के दायरे से वे अबतक नहीं निकल पाए है और प्रवक्ता की बजाए अक्सर एंकर बनने की कोशिश करने लग जाते है. ऐसे में उनकी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है. टाइम्स नाउ में अर्णब के सामने तो वे हकलाने और लगभग चीखने की मुद्रा में आ जाते है. नीचे दिए गए वीडियो में आप उन्हें इस रूप में देख सकते हैं. आशुतोष भूल जाते हैं कि वे अब प्रवक्ता हैं एंकर नहीं. उन्हें अपनी बातें तर्कसंगत और प्रभावी ढंग से रखना होगा. यह उनका न्यूज़रूम नहीं है जहाँ कुछ भी कहकर वे चल निकलते थे. इस मामले में उन्हें अपनी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल या फिर योगेन्द्र यादव से सीख लेनी चाहिए. नहीं तो न घर के रहेंगे और न घाट के.
देखिए अर्णब के शो में आशुतोष की चिल्ला-चिल्ली :