वेद उनियाल
आप पार्टी के दिल्ली विधानसभा चुनीव जीतने पर आशुतोष के पिता ने गदगद होकर एक चिट्ठी मीडिया के नाम लिखी थी। चिट्ठी का लब्बोलुआव यह था कि उन्हें उनके बेटे पर गर्व है जो अब बहुत बड़ा नेता हो गया है। अब यही बड़ा नेता खुलआम कह रहा है कि संदीप के विडियो में हर्ज क्या है। यह तो दो लोगों का मामला है। पता नहीं इस पर उनके पिता की क्या राय होगी। लेकिन पत्रकारिता से राजनीति में आए व्यक्ति की समझ इससे उजागर हो जाती है। ईश्वर करे आशुतोष के पिता संदीप की यह सीडी न देखे , शायद उन्हें दुख होगा कि उनका बेटे की पार्टी किन किन बुलंदियों को छू रही है। वैसे भी पंजाब से कुछ और विडियो क्लीपिंग आ रही है।
पत्रकार रहते हुए वैसे भी आशुतोष ने न कभी कोई ऐसा विश्लेषण लिखा जिसपर चर्चा हुई हो। जिसे याद रखा जाए। न कभी कोई खास खबर। बिहार में बाढ़ के जाकर एबीपी के संवाददाता जैसा साहस दिखा पाना तो बहुत बड़ी बात वे जनवरी में दिल्ली का जाड़े की खबर दिखाने के लिए भी कभी नहीं निकले। पत्रकारिता में उनका कोई भी ऐसा योगदान नहीं है कि जिसे याद रखा जा सके। न राजनीति की खबर न आर्थिक विश्लेषण। दंगे प्रभावित क्षेत्र में रिपोर्टिंग के लिए जाना तो दूर वह बारिश में भीगते शहर को भी दिखा पाए। उनकी चर्चा अगर कभी हुई तो कांशीराम से जुड़े एक प्रसंग से ही हुई। टीवी में वे दिखते जरूर थे लेकिन लिखा हुआ ही पढ़ते थे।
लेकिन जुगाड उन्होंने आप पार्टी में घुसने का लगाया। और चांदनी चौक की उस सीट का टिकट ले लिया जहां से वह शायद ही कभी पराठा गली में भी घुसे हों। जिस चांदनी चौक का उन्होंने टिकट लिया , वहां के आठ बजारों के नाम भी वो शायद ही जानते रहे होंगे। और चुनाव लड़ा तो अपना नाम आशुतोष और जाति का जोरदार उल्लेख करना नहीं भूले। यह अलग बात है कि चांदनी चौक से समझदार बनिया समाज ने उनके जातिवाद आग्रह को ठुकरा दिया। हालांकि ध्यान खींचने के लिए उन्होंने इलाके में हंगामा भी किया था।
अच्छा है कि यह बयान आशुतोष ने नेता बनने के बाद दिया है। मंत्री के अश्लील विडियो पर उनकी टिप्पणी है कि दो लोगों का मामला है इस पर इतना तूल क्यों। दिल्ली में आप पार्टी के नेताओं के स्तर पर उनका एक नेता यही कह सकता है। हां अगर पत्रकार रहते आशुतोष ने यह बयान दिया होता तो हम सब पत्रकार शर्मशार हो जाते। ऐसे लोग अब राजनीति में हैं और तुर्रा यह कि जयप्रकाश नारायण और अन्ना से अपने को जोड़ते हैं। और लोग उन्हें राष्ट्रीय नेता कहें इसके लिए सुबह मुर्गे की बाग के साथ ही मोदी मोदी कहने लगते हैं। ताकि उन्हें बिना ग्राम प्रधान का चुनाव जीते मोदी के ही समकक्ष नेता मान लिया जाए। जिंदगी में शार्टकट से सफलता पाने वाले अक्सर ऐसे ही करते हैं।