आरुषि की व्यथा गाथा में हिन्दी न्यूज चैनलों का तमाशा

arushi abp newsआज तो हिन्दी टीवी न्यूज चैनलों के लिए ईद है. आरुषि पर जितने मार्मिक पैकेज बना सकते हो, बना दो. जितना खेल सकते हो, खेल लो (टीवी न्यूज की भाषा में ऐसा ही कहते हैं). ऐसा दिखाओ कि दर्शक की आंख से आंसू आ जाए. टीवी से चिपक जाए. आरुषि के मां-बाप को जितना विलेन बना सकते हो बना दो.

जितना नाट्य रुपांतरण कर सकते हो, कर दो. पूरा ड्रामा क्रिएट कर दो. छा जाओ. बार-बार आरुषि पर फैसला थोड़े ही आना है. जितनी टीआरपी की कमाई होगी, उतना अच्छा. पापा-बेटी, मम्मी-बेटी कहकर सबको भावुक कर दो. आखिर क्यों मारा पापा आपने मुझे. नाट्य रुपांतरण ऐसा करो कि बस इंटरटेनमेंट चैनल वाले क्राइम शो -सावधान इंडिया- और -क्राइम पेट्रोल- वाले भी पानी मांगने लगें. हाथ जोड़ लें आपके सामने कि भइया, हमसे नहीं होगा. आप लोग महान हो. आप न्यूज वाले हो, सो आपकी बराबरी हम कैसे करें इंटरटेनमेंट वाले. हमारे पास उतना दिमाग नहीं होता ना.

तो दोस्तों, शुरुआत हो चुकी है. बेशर्मी का खेल खेलने की. पत्रकारिता के ethics को तार-तार करने की. टीआरपी बटोरने की जंग की. अभी जी न्यूज पर प्रोमो देख रहा था. आरुषि मर्डर का नाट्य रुपांतरण. एक लड़की का वीओ आता है. रोती-सिसकती आवाज (अब पत्रकार वीओ करने के लिए ड्रामा भी करने लगे हैं). फ्रेम में आरुषि की तस्वीर और पीछे से आवाज आती है—पापा-पापा, क्यों मारा आपने मुझे. अभी शाम को ही तो कैमरा दिया था और रात को मार डाला???!!!—

रोती -सिसकती आरुषि की इस आवाज की नकल करके एक धांसू बिकाऊ पैकेज-स्पेशल शो बनाया है जी न्यूज ने. दूसरे चैनल भी ऐसा ही करेंगे. आज आरुषि की स्टोरी बिकेगी. टीआरपी का कम्पिटिशन है. भांड़ में गई पत्रकारिता की नैतिकता और खबरों की समझ. उसे पेश करने का तरीका. एक ही फंडा है. दर्शक को इमोशनल करो और आरुषि की खबर बेचो. देखो-देखो, मेरा पैकेज तुमसे ज्यादा मार्मिक और सटीक है. कह रहे हैं रो दोगे, देख लिया तो. आरुषि की व्यथा-गाथा सबसे अच्छी हमने दिखाई. आज तो दर्शक सबसे ज्यादा हमारे चैनल पर रहेंगे, वगैरह-वगैरह. कुछ इसी तरह की खुशफहमियां पालकर आज हिन्दी टीवी न्यूज के प्रोडयूसर्स काम कर रहे हैं. सब आरुषि मर्डर मिस्ट्री पर अपनी विजय पताका लहराने को आतुर हैं. आओ मैदान में. देखें जरा, किसके पैकेज-स्पेशल में कितना है दम. जमके रखना कदम. ओ मेरे स्पेशल प्रोग्रामिंग के साथिया…..

पूरे मूड में टाइम्स नाऊ वाले अर्नव गोस्वामी

भई, कमाल हो गया. टाइम्स नाऊ वाले अर्नव गोस्वामी आज पूरे मूड में लगते हैं. आज आरुषि पर उन्होंने कुछ ‘हट के’ डिबेट करने का फैसला किया है. News Hour में. जानते हैं आज के डिबेट का विषय क्या है- Did media unfairly targeted (Talwars) through out the trail?? तो मतबल ये हुआ कि अर्नव भाई आज ये बोलने वाले हैं कि सीबीआई कोर्ट का फैसला -Unfair media trail- ने भी प्रभावित किया है. वाह जनाब!! वैसे ये अनफेयर ट्रायल किया तो आप ही लोगों ने था ना. और बहस भी आप ही करवा रहे हैं. बहुत खूब. आम के आम और गुठली के भी दाम. जय हो.

आरुषि के मां-बाप को गरियाना बंद करें, Please.!!!

निचली कोर्ट के फैसले पर जो लोग आरुषि के मां-बाप को गरिया रहे हैं, वे ठीक वहीं कर रहे हैं, जब आरुषि हत्याकांड के रोज टीवी चैनल वाले कर रहे थे. कइयों ने तो पैकेज चला दिए थे कि —देखिए, इस शैतान-हैवान राक्षस हेमराज को, जो घर में अकेली मासूम लड़की का कत्ल करके भाग गया. शायद उसका रेप भी किया. वगैरह-वगैरह.

लेकिन चंद दिनों में असलियत कुछ और सामने आई. हेमराज कहीं भागा नहीं था, बल्कि वह भी मार दिया गया था. और फिर पूरी कहानी ही पलट गई. टीवी चैनल वाले अब हेमराज को ‘पीड़ित पक्ष’ बताने लगे.

सो भाईयों, ये जो फैसला है, सीबीआई वाला. ये ऊपरी अदालतों में टिक नहीं पाएगा. Circumstantial evidence की कोर्ट में अहमियत होती है लेकिन इतनी भी नहीं कि आरुषि जैसे चर्चित मामले में इसी के आधार पर मां-बाप को दोषी करार दे दे. वैसे भी सीबीआई की थ्योरी थोथली है. उसमें वजन नहीं लगता. वे कातिल हो भी सकते हैं और नहीं भी. लेकिन सिर्फ शक के आधार पर मां-बाप को गुनाहगार नहीं ठहराया जा सकता.
अतः गुरुवरों से अपील है कि कृपया आरुषि मामले में थोड़ा ठंड रखें. उसके मां-बाप को गाली देना और अपशब्द कहना बंद करें. मामला अभी सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा. जब इतने साल इंतजार किया है तो थोड़े साल और रुक जाएं. लेकिन साक्ष्यों के साथ इतनी लापरवाही पुलिस ने बरती है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी ऐतिहासिक टाइप का ही होगा, इसकी पूरी उम्मीद है.

आरुषि हत्याकांड भारतीय लोकतंत्र और पुलिस तंत्र के लिए एक केस स्टडी बन गया है अब. भावी पीढ़ियां इसका उदाहरण देकर या तो हम पर हंसेंगी, दुत्कारेंगी या फिर ये कहेंगी कि हां, हम लोगों ने समय रहते इससे सबक ले लिया और उन्हें शर्मिंदा होने से बचा लिया.

दरअसल आरुषि एक नहीं, कई हैं. हम सब के बीच. रोज हम उन्हें देखते हैं और इग्नोर करके आगे बढ़ जाते हैं. अगर तलवार दंपती वाली आरुषि से आपको सचमुच सहानुभूति है और उसका दर्द आप महसूस कर रहे हैं तो आपके पास मौका है. कई आरुषियों को बचाने का. उनकी मदद करने का. वो कीजिए. नेक काम है. पुण्य भी मिलेगा और दिल को सुकून भी. फेसबुक पर आरुषि के मां-बाप को गरियाने से कुछ नहीं मिलने वाला. किसी और की भड़ास क्यों आरुषि के मां-बाप पर निकाल रहे हैं??!!

आरुषि को किसी की सहानुभूति की जरूरत नहीं, चुप हो जाओ पाखंडियों

अगर इस देश में पुलिस-जांच एजेंसियां ऐसे काम करती हैं कि एक आम घर में बेटी-नौकर की हत्या की गुत्थी सुलझाने में पुलिस-सीबीआई को 5 साल से ज्यादा लग जाता है, तो फिर शर्म आनी चाहिए. ना कोई हाई-प्रोफाइल मामला, ना कोई राजनीतिक-प्रशासनिक दबाव, फिर भी पुलिस-सीबीआई की थ्योरी कितनी बार बदली. शर्मनाक. और अगर कोर्ट initiative नहीं लेता तो देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई ने तो मामले में क्लोजर रिपोर्ट ही दाखिल कर दी थी. भई वाह.

नदीम एस अख्तर
नदीम एस अख्तर

तो आज सांस थामकर आप आरुषि को तथाकथित फैसला मिलने की उम्मीद क्यों जता रहे हैं. भावुक क्यों हो रहे हैं??? आरुषि की खबर को बेचना बंद करिए और उस बहाने खुद को सरोकारी और संवेदनशील दिखाने का दिखावा भी मत करिए. आरुषि आजाद भारत की एक ट्रैजिडी है. उस पर विलाप मत करिए, विमर्श करिए. सच्ची सोच कि आखिर हमारा सिस्टम इतना नाकाम क्यों है???

और अभी भी सारे रहस्य से पर्दा नहीं उठा है. सीबाआई जो तलवार दंपति के बारे में बता रही है, वो उसकी थ्योरी है. हो सकता है कि ऊपर की अदालतों में सीबीआई की थ्योरी टांय-टाय फिस्स हो जाए. सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि शुरुआत में ही पुलिस ने उन साक्ष्यों को मिट जाने दिया, जो केस में अहम सुराग दे सकते थे. आरुषि से सबक सीखिए, इसे भावनात्मक रूप से भुनाइए मत. प्ली

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