इलाहाबाद में कुंभ मेले की खबरों के बीच एक दुखद खबर आयी है…श्री अरूण कुमार अग्रवाल का निधन हो गया है…वे अंतर्राष्ट्रीय श्रोता समाचार नामक पाक्षिक अखबार के संपादक थे और पत्रकारिता और पत्रकारों की खबर लेते रहते थे..खिंचाई करने से भी नहीं चूकता था उनका अखबार…
दो दशक तक यही अखबार मीडिया की भीतरी हलचलों का केंद्र रहा…हालांकि इलाहाबाद में उनको बड़े पत्रकार पत्रकार नहीं मानते थे…कहते थे कि कपड़े की थान नापने वाला बनिया है…अरूणजी खुद भी अपने को पत्रकार होने का दावा नहीं करते थे…लेकिन मैने उनको करीब से देखा है…वे खांटी पत्रकार थे..ईमानदारी से आजीविका के लिए और काम करते हुए पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा की…
आज की मुख्यधारा की पत्रकारिता में भले ही उनको हाशिए पर रखने की कोशिश हुई हो लेकिन उनके जैसे प्रतिबद्ध इंसान के कामों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है…आज के दौर के कई भारी पत्रकार श्रोता समाचार के संवाददाता रहे थे…वे खुद में एक बड़ी किताब थे…
मैं जब इलाहाबाद में जनसत्ता का संवाददाता रहा तो जनोन्मुखी पत्रकारिता के सनक के नाते बहुतों के निशाने पर रहा..कई पत्रकार साथियों के भी…मेरे सबसे करीबी मित्र भाई प्रमोद शुक्ल और अनुज हेमंत तिवारी ही उस दौर में हमारे साथ रहे…लेकिन लगातार हमें अरुण जी का समर्थन मिला…
मुझे जब 1985 में विद्या भास्कर पुरस्कार मिला और प्रयाग संगीत समिति में उसे देने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह पहुचे तो कई अखबारों ने खबरों में मुझे गायब कर दिया..
कुछेक छोटे अखबारों और अरूण जी ने जरूर इसे प्रमुखता से छापा था…वो खुद में एक संस्था थे…तीन दशक से तो मैं ही देख रहा हूं..ऐसा कभी नहीं हुआ कि उनका अखबार स्थगित रहा हो…मैं उनको दिल से याद करते हुए कामना करता हूं कि इस अखबार का मू्ल्यांकन कमसे कम इलाहाबाद विश्वविद्यालय का पत्रकारिता विभाग करे…उनको मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि.
(Arvind K Singh के फेसबुक वॉल से साभार)