कुणाल देव
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध…
मुंबई पुलिस वाकई जांबाज है। जिस तरह से पुलिस के बांकुरे अफसर पत्रकार अर्णब गोस्वामी को घर से घसीटकर साथ ले गए, उससे उनकी जांबाजी साफ झलकती है।
हालांकि, ऐसी जांबाजी पर लानत है। आपराधियों को ढूंढने में नाकाम रहने वाली मुंबई पुलिस ने अपने सफेदपोश आकाओं के निर्देश पर इस कायराना हरकत को अंजाम दिया है।
लेकिन, पुलिस से शिकायत फिर भी कम है। सबसे ज्यादा शिकायत तो मीडिया विरादरी से है, जो इस आपद स्थिति में भी विभक्त है।
सिद्धांत अलग हो सकते हैं, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा भी , लेकिन यह सवाल तो अस्तित्व का है।
अर्णब की गिरफ्तारी ने चौथे स्तंभ को चुनौती दी है।
आप आज सुरकित हो सकते हैं, लेकिन क्या आप यह गारंटी ले सकते हैं कि कल आपके खिलाफ कोई साजिश नहीं होगी।
मैं अर्णब से कभी नहीं मिला। कई मुद्दों पर अर्णब से सहमत भी नहीं हूं।
लेकिन, बात पत्रकार की है, चौथे स्तंभ के अस्तित्व की है।
अर्णब ऐसा कौन सा काम कर रहे थे, जिसके लिए उनके साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया जाना जरूरी था।
जरा-जरा सी बात पर सोशल मीडिया पर आक्रोश और विरोध दर्ज कराने वाले सक्रिय पत्रकारों की चुप्पी भी बहुत खलती है।
वे शायद अर्णब से नाराज होंगे।
लेकिन, यह वक्त किसी व्यक्ति विशेष से नाराजगी रखने का नहीं है, बल्कि चौथे स्तंभ पर हुए हमले के खिलाफ एकजुट होने का है।
हम आपसी लड़ाई और मतभेद को फिर सुलझा लेंगे। आज आपकी चुप्पी राष्ट्रकवि रामधारी दिनकर की याद दिलाती है…
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध
(लेखक के सोशल मीडिया वॉल से साभार)