तो अर्णब गोस्वामी हमारे जमाने के अल्बर्ट पिंटो हैं। क्योंकि अल्बर्ट पिंटो की कुख्याति अकारण गुस्सा करने की हैं। इसलिए ‘पूछता है भारत’ कि अर्णब को पत्रकारिता आती भी है या नहीं? क्योंकि देश ने उनको पत्रकारिता करते तो कभी देखा नहीं।
लेकिन, गुस्साते, चीखते – चिल्लाते और उनसे अपमानित लोगों की भाषा में कहें, तो लगभग भौंकते हुए देश हर रोज देख रहा है।
विज्ञान के मुताबिक गुस्सा मानसिक बीमारी है। लेकिन, हट्टे कट्टे अर्णब कहीं से भी बीमार तो बिल्कुल नहीं लगते।
फिर, टेलीविजन पर उनका गुस्सा अगर सिर्फ टीआरपी बढ़ाने का टोटका है, तो मतलब वे अभिनय बहुत बढ़िया कर लेते हैं।
हालांकि, हमारी संस्कृति में मेहमान का मान रखने की परंपरा है।
लेकिन ‘पूछता है भारत’ कि अर्णब के संस्कार ऐसे क्यों हैं कि वे अपने न्यूज चैनल पर डिबेट में जिन अतिथियों को बोलने के लिए बुलाते हैं, उनकी बोलती बंद करने के लिए लगभग बदतमीजी पर उतर आते हैं।
भारत में हिंदी न्यूज चैनल उन लोगों का मंच है जिन्हें एसपी सिंह की जलाई इस मशाल में अब भी रोशनी नज़र आती है।
इसलिए ‘पूछता है भारत’ कि अर्णब को आखिर गुस्सा क्यों आता है। या वास्तव में आता भी है या नहीं।
नहीं आता, तो ‘पूछता है भारत’ कि वे संपादक है या नौटंकीबाज।
अगर संपादक नहीं है, तो फिर वे नौटंकी के लिए स्वतंत्र हैं।
लेकिन स्वयं को संपादक स्वीकारते हैं, तो अपनी सलाह है कि अर्णब को समय रहते पत्रकारीय आचरण भी सीख लेना चाहिए।
क्योंकि हमारे हिंदुस्तान में जोकरों, जमूरों और मदारियों को न्यूज एंकर के भेष में देखने की परंपरा नहीं है।
निरंजन परिहार – लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं