बुंदेलखंड से प्रकाशित खबर लहरिया समाचार पत्र वैकल्पिक मीडिया भारत में बड़ा उदाहरण है।बुंदेली, अवधी, भोजपुरी और वज्जिका भाषाओं में प्रकाशित आठ पृष्ठ के इस समाचार पत्र का प्रकाशन समाज के कमजोर वर्ग की महिलाओं द्वारा किया जाता है। करीब 600 गांवों तक फैली इसकी पाठक संख्या 60 हजार से अधिक हो गई है और अब बिहार में मुजफ्फरपुर के पारू प्रखंड की ग्रामीण लड़कियों द्वारा संचालित अप्पन समाचार (ऑल वुमेन न्यूज चैनल) इस मिथक को नकार रहा है कि मीडिया के लिए बड़ी पूंजी और इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत जरूरी है।
यह मीडिया उन गांवों का है, जहां अखबार इक्का-दुक्का पहुंचते हैं, रेडियो-टेलीविजन भले ही हों, पर बिजली नहीं है। सड़कें या तो खराब हैं, या हैं ही नहीं, स्वच्छ जल का अभाव है, स्कूलों में मास्टर या तो होते ही नहीं या खुले आसमान के नीचे कक्षाएं चलती हैं।
योजनाएं गांव वालों तक पहुंचती नहीं और गांव वालों को अंधविश्वास से मुक्ति मिलती नहीं। ऐसे ही गांवों में अप्पन समाचार सनसनी परोसते और अश्लील होते जा रहे चैनलों के मुकाबले खड़ा है। वह चैनल, जिसे प्रियंका कुमारी, खुशबू, सरिता, पिंकी, ममता, रेणु, अनिता, जुबेहा खातून, रिंकू कुमारी, मधु जैसी कोई डेढ़ दर्जन लड़कियां नारायणी नदी के किनारे दियारा क्षेत्र में बने अपने दफ्तर से संचालित करती हैं। यह उस इलाके की बात है, जो नक्सल प्रभावित है, जहां बाहुबलियों का वर्चस्व है और गरीबी व अशिक्षा तो है ही।
गांव की बेटियों के हाथों में मूवी कैमरा, पेन, नोटबुक और कैमरा ट्राइपैड देखकर रामलीला गाछी (चांदकेवारी) गांव की इस मीडिया क्रांति से हम रूबरू हो सकते हैं। एक पिछड़े गांव से निकलकर प्रतिभा की मिसाल बन चुकी चैनल की स्टार रिपोर्टर अनिता, ममता और पिंकी का जज्बा देखते ही बनता है। इनके साथ खुशबू के लेख, समाचार दुनिया के प्रमुख पोर्टल व अखबार भी प्रकाशित-प्रसारित कर रहे हैं। और इन्हें यहीं रुक जाना मंजूर नहीं- ‘हम अब पत्रकारिता का कोर्स भी करेंगे।’ चैनल के संस्थापक संतोष सारंग सुकून की सांस लेते हैं-‘जब बेटियां ही सब कुछ कर रही हैं, तो फिर दूसरों का क्या काम?’
(Naseer Ahmad Siddiqui के फेसबुक वॉल से)