मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव में आजतक की मशहूर एंकर अंजना कश्यप के दिए गए वक्तव्य का सार : (परिचर्चा – राजनैतिक दलों की पत्रकारिता : वॉर रूम,सोशल मीडिया और प्राइम टाइम की बहसें)
आज बाकायदा शिफ्ट में राजनीतिक पार्टियों की मीडिया सेल में लोग काम कर रहे हैं. कार्ड पंचइन-पंचआउट करके इन्ट्री होती है..आपको सामने से लग सकता है कि एक राजनीतिक पार्टी में मीडिया के लिए केवल बारह लोग काम कर रहे हैं लेकिन पीछे से इसके लिए हजारों लोग काम कर रहे हैं. एक-एक व्यक्ति को सौ-सौ ट्विटर अकाउंट हैंडल करने के काम में लगाया हुआ है. हमें जो इतनी गालियां मिलती हैं वो कहां से और किनसे मिलती है ? वो भी हमारी एक-एक खबर पर, फुटेज पर, फ्लैश पर नजर रख रहे हैं..उन्हें सैलरी भी इसी बात की मिल रही है..हमने राजनीतिक दलों की नींद हराम तो कर दी है और इन सबके बीच आपको लगता है मीडिया बिका हुआ है, मालिक मिले हुए हैं..ऐसा मत कहिए, खोट हममे भी है..आप पत्रकारिता का इतनी आसानी से दाह संस्कार मत कीजिए.
वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपनी सुरक्षा के लोगों को साफ हिदायत दी हुई है कि कोई भी पत्रकार १५ मीटर के दायरे से अंदर आए, उसे उठाकर बाहर कर दो, आप उनसे बाइट नहीं ले सकते.इन सबके बीच पत्रकारिता हो रही है.. मुझे आज की पत्रकारिता से कोई निराशा नहीं है. पहले हम फीमेल एंकर को पॉलिटिकल स्टोरी की बुलेटिन करने नहीं दिया जाता था. हमने मना करना शुरु किया कि मैं सिर्फ एन्टरटेन्मेंट पर शो नहीं करुंगी हमने अपनी लड़ाई खुद लड़ी है और आज हम जिस तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं, हमें खूब अच्छी नींद आती है. #मीडियाखबर2015
वक्तव्य का सार – न्यूज चैनलों पर किसी सियासी दबाव होने की बात को खारिज करते हुए आज तक चैनल की तेज-तर्रार एंकर अंजना ओम कश्यप ने कहा कि हम राजनीतिक दलों से सवाल करने और उनकी नींद हराम करने की स्थिति में हैं और हम ऐसा कर रहे हैं, इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि हम रेंग रहे हैं। मीडिया में महिलाओं के प्रति परंपरागत सोच को कठघरे में खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें राजनीतिक पत्रकारिता करने के लिए लड़ना पड़ा।)
मै अंजना ओम कश्यप जी और डॉ० अरुण कुमार जी से सहमत होते हुए सभी प्रबुद्धजनों और मीडिया जगत के उन सभी पुरोद्धाओं से सिर्फ इतना ही कहूँगा कि अपनी दुर्गति के लिए व्यक्ति खुद ही ज़िम्मेदार होता है कोई और नहीं। मीडिया आज जिस भी दौर से गुज़र रहा है उसके लिए हम मीडिया कर्मी ही ज़िम्मेदार हैं। रिवॉल्विंग चेयर पर बैठे लोग आज मीडिया को रिवॉल्व कर रहे है, इसको री-वैल्यूऐट और डी-वैल्यूऐट कर रहे हैं। यही लोग मीडिया को बाज़ारू बना रहे हैं। अधिकाँश लोग मीडिया को बाज़ारू मीडिया की नज़र से ही देखते हैं। इसका आंकलन फील्ड में काम कर रहे मीडिया कर्मी के साथ रहकर ही किया जा सकता है ना कि AC रूम और रिवॉल्विंग सीट में बैठकर।