राजीव रंजन झा
क्या ANI रिपोर्टर को वाड्रा से केवल फिटनेस के बारे में पूछना चाहिए था?
1-पत्रकारों के सवाल प्रासंगिकता और सामयिकता पर निर्भर करते हैं। इस समय रॉबर्ट वाड्रा की मीडिया से जहाँ भी मुलाकात होती, सबसे पहला प्रश्न यही होता कि हरियाणा सरकार ने भूमि सौदों की जाँच का जो फैसला किया है उस पर आपका क्या कहना है?
अगर किसी पत्रकार को लगता है कि फिटनेस के कार्यक्रम में बुलाये गये एएनआई रिपोर्टर को वाड्रा से केवल फिटनेस के बारे में पूछना चाहिए था, तो उन्हें आइने के सामने खड़े हो कर खुद से पूछना चाहिए कि क्या वे वाकई पत्रकार हैं?
2- वैसे मुझे अंदाजा था कि इस प्रसंग में मोदी का नाम जरूर छेड़ा जायेगा। लेकिन मैंने जान-बूझ कर उस बारे में कोई जिक्र नहीं किया था। आपको इतना याद दिला दूँ कि नरेंद्र मोदी से 2002 के बाद ही लगातार सारे सवाल पूछे जाते रहे। मोदी ने इस सवालों को छोड़ने का सिलसिला 2007 के बाद से शुरू किया। उससे पहले उन बड़े पत्रकार ने भी गुजरात दंगों के मुद्दे पर ही मोदी का लंबा इंटरव्यू किया था, जिन्हें बाद में मोदी ने हेलीकॉप्टर से उतार दिया था। मैंने एक बार लंबी सूची गिनायी थी 2002 से 2007 के दौरान गुजरात दंगों पर मोदी के उन साक्षात्कारों की, जिनमें सेक्युलरिज्म के इन्हीं पुरोधा पत्रकारों ने मोदी से सारे निर्मम सवाल पूछे थे और मोदी ने हर सवाल का जवाब दिया था। आप जवाब से संतुष्ट हों या नहीं हों, यह आपका विशेषाधिकार है। लेकिन मोदी ने जब यह देखा कि लोग जवाब नहीं सुनना चाहते, उनका उद्देश्य केवल एक मुद्दे को सोंटा बना कर उन्हें पीटना है, तो उन्होंने इन सवालों का और जवाब नहीं देने का रणनीतिक निर्णय किया। मेरा व्यक्तिगत विचार है कि उन्हें बाद में भी इन सवालों से बचना नहीं चाहिए था। लेकिन मोदी ने जो भी रणनीति अपनायी, वह राजनीतिक रूप से सफल रही। 2007 से 2014 के बीच मीडिया और मोदी की जो भी भिड़ंत हुई, उसमें मोदी जनता के बीच ज्यादा विश्वसनीय बनते रहे।
लेकिन यहाँ प्रसंग रॉबर्ट वाड्रा का है, जिसमें नयी सरकार की ताजा घोषणा के बाद मीडिया ने जब पहली बार वाड्रा से बात करने की कोशिश की तो माइक झटक दिया गया, सुरक्षाकर्मियों से फुटेज डिलीट करने को कहा गया और रिपोर्टर को 20-30 मिनट जबरन रोका गया। आप दोनों बातों की तुलना करते रहना चाहते हैं तो करते रहिए। मोदी को आप जैसे मित्रों की बहुत जरूरत है!
स्रोत-एफबी