मनीष कुमार
ANI रिपोर्टर के लैंड-डील के सवाल पर रॉबर्ट वाड्रा ने जो कहा उसका भावार्थ कुछ इस तरह से है.. “तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है.. ये पूछने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई.. तुम्हारी औकात क्या है जो तुम ये सवाल मुझसे पूछो.. मुझसे ये सब पूछने वाले तुम कौन हो… मूर्ख कहीं के.. पागल हो क्या..” इसके बाद जनता के पैसे से तैनात अपने सुरक्षाकर्मी को दामाद जी ने को आदेश दिया कि इस रिपोर्टर के टेप से सारा फूटेज डीलीट कर दो. सुरक्षाकर्मियों ने आदेश का पालन किया. कैमरामैन और रिपोर्टर को घेर लिया. वीडियो को जबरन डीलीट करने की कोशिश की लेकिन कैमरामैन इन सुरक्षाकर्मियों से ज्यादा स्मार्ट निकला.. वह वीडियो को बचाने में कामयाब रहा. चकमा देकर दोनो बाहर निकले और बवाल मच गया.
जिस कला में कांग्रेस माहिर है उसका आज कुछ कांग्रेसी प्रवक्ताओं ने जम कर प्रदर्शन किया लेकिन शाम तक आते आते उनकी भी हवा निकल गई. लगता है झूठ बोलना और इनडिफेंसिबल को डिफेंड करना कांग्रेस के DNA में आ गया है. लेकिन इस बार तो स्वयं दामाद जी ही निशानें पर आ गए. यही वजह है कि कांग्रेस के तीन धुरंधरों ने झूठ और फरेब की सारी सीमाएं लांघ दी.
एक तो वही पुराना घिसा पिटा राग कि राबर्ट वाड्रा प्राइवेट सिटिजन हैं. अब इन कांग्रेसियों को कौन समझाए कि जिस व्यक्ति वजह से पार्टी चुनाव हार गई. हरियाणा से गायब हो गई. वह प्राइवेट सिटिजन नहीं हो सकता. वह तो कांग्रेस पार्टी के लिए भस्मासुर है. जिस दिन कांग्रेसी यह समझ जाएंगे और दामाद जी के साथ साथ गांधी परिवार की दासता का परित्याग कर देंगे उस दिन से पार्टी मजबूत होने लगेगी. कांग्रेसियों की राजनीति चमक उठेगी.
दूसरे ने कहा कि हर आदमी की प्राइवेसी होती है.. अरे भई, पूरी दुनिया कांग्रेसी नहीं है जो सोनिया राहुल और दामाद जी से मिलने के लिए आवेदन पत्र दें. वैसे भी दामाद जी एक पब्लिक फंक्शन में गए. मीडिया को बाकायदा ईमेल के जरिए आमंत्रित किया गया था. यह कार्यक्रम दिल्ली के अशोका होटल में था. अशोका होटल कांग्रेस की प्राइवेट प्रोपर्टी नहीं है. देश की जनता के पैसे से बना सरकारी होटल है. यह कोई निजी संपत्ति भी नहीं है. और तो और यहां दामाद जी लोगों से मिलजुल रहे थे. बातचीत कर रहे थे. इसलिए प्राइवेसी का मामला भी नहीं बनता. एएनआई का रिपोर्टर अगर दीवार फांद कर दामाद जी के घर घुस गया होता.. या बेडरूम की शूटिंग कर लेता तब ये मामला प्राइवेसी के हनन का बनता.. इसलिए यह दलील भी बेकार है. एक सार्वजिनक व्यक्ति से एक सार्वजनिक जगह पर मीडिया सवाल नहीं पूछेगा तो कहां पूछेगा और किससे पूछेगा? जमीन घोटाले पर वाड्रा से नहीं पूछा जाएगा तो किससे पूछा जाएगा?
एक धुरंधर कांग्रेसी ने कहा कि मीडिया पेपराजी बन गया है. यह गलतबयानी इसलिए है क्योंकि कोई जोर जबर्दस्ती नहीं हुई.. और न ही रिपोर्टर ने जबरदस्ती माइक को दामाद जी के मुंह में घुसेड़ दी. दामाद जी बाइट दे रहे थे.. पहले सवाल के जवाब में दामाद जी बाकायदा दो मिनट तक लंबी लंबी भाषण दे चुके थे.. लेकिन जैसे ही जमीन घोटाले का सवाल पूछा गया तो उनके अंदर का सांमत जगा. उन्हें एहसास हुआ कि वो तो गांधी पारिवार के दामाद हैं.. इस अदना से रिपोर्टर की क्या मजाल जो इस तरह के सवाल मुझसे पूछ ले.. दामाद जी को लगा कि शायद इस मूर्ख रिपोर्टर को पता नहीं कि वो घर बैठ कर देश का प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति कौन होगा ये तय करते हैं.. और यही वजह है कि दामाद जी ने माइक को धक्का दिया और सुरक्षाकर्मियों को यह फरमान दिया कि कैमरा बचने न पाए.. टेप को जब्त कर लो.
एक कहावत है कि रस्सी जल गई लेकिन ऐंठन नहीं गई. कांग्रेस पार्टी बार बार इस बात को साबित करती है कि वह एक सामंतवादी पार्टी है और इस पार्टी में हर व्यक्ति गांधी पारिवार का दास है. प्रजांतत्र उनके घर की खेती है और जो उनका मन करेगा वो करेंगे.. कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. अगर आज कांग्रेस की सरकार होती तो यह खबर दबा दी गई होती और अब तक रिपोर्टर की नौकरी चली गई होती. जिस तरह 2012 विधानसभा चुनाव के दौरान जब दामाद जी मोटरसाइकिल पर अमेठी का दौरा कर रहे थे तो एक आईएएस आधिकारी पवन सेन ने रोका था.. उस अधिकारी का फौरन ट्रांसफर कर दिया गया था. उसी तरह दिल्ली में एक बार एक व्यक्ति को पुलिस ने प्रताडित किया था क्योंकि उसने दामाद जी की कार से ओवरटेक किया था.
देश बदल गया है.. सरकार बदल गई है.. लेकिन कुछ लोगों का दिमाग आज भी सनका हुआ है.. सरकार को चाहिए कि कुछ ऐसा उदाहरण पेश करे जिससे सातवें आसमान पर उड़ने वाले लोगों की अकल ठिकाने आ जाए.