ओम थानवी,संपादक,जनसत्ता
दिल्ली का सुख यह है कि वक्त हो तो रोज शाम कहीं न कहीं (मुख्यतः इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, हैबिटाट सेंटर या मंडी हाउस) कोई श्रेष्ठ गायन, नृत्य, फिल्म या व्याख्यान हो रहा होता है। कौन होगा जो इन्हें छोड़कर टीवी के आगे या पीछे जाकर बैठेगा? तो कल शाम दो टीवी चैनलों से क्षमा मांगी और दो बेहतरीन आयोजनों का लुत्फ लिया। हालांकि दोनों कमोबेश एक ही वक्त पर थे, लेकिन जगह (आइआइसी) एक होने के कारण किसी तरह दोनों निभ गएः कुमार गंधर्व स्मृति संध्या, जिसमें उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रही Kalapini Komkali और Bhuvanesh Komkali को सुना। कुमारजी पर मुकुंद लाठ को, जिन्होंने “कालजयी कुमार गंधर्व” नाम के दो सुरुचिपूर्ण ग्रंथों का लोकार्पण किया।
बीच में खिसककर एडीटर्स गिल्ड के आयोजन में थोड़ा राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान सुन आया। मित्रवर Anand Patwardhan (जिन्हें बीजी वर्गीज साहब ने भूल से आनंदजी के चाचा अच्युत पटवर्धन के नाम से पुकारा!) ने ‘मौजूदा सरकार और मीडिया’ विषय पर संघ और नरेंद्र मोदी सरकार की बखिया उधेड़ कर रख दी। उन्होंने कहा – मोदी कारपोरेट उद्यमियों की नुमाइंदगी करते हैं, वे उन्हीं के हित साधेंगे। यह तो संयोग था कि महत्वाकांक्षी मोदी उनके सामने पड़ गए, वरना कारपोरेट संसार खुद कोई मोदी अपने लिए तैयार कर लेता।
एक और दिलचस्प बात आनंद ने यह कही कि अब इमरजेंसी नहीं लगेगी, क्योंकि उसकी जरूरत ही नहीं बची है – मीडिया चुनाव के दौर से लेकर अब तक जिस तरह मोदी नाम के कथित विकास/विचार का खुद हिस्सा बन गया है, अब इमरजेंसी जैसे हथियार से मीडिया को काबू करने की जरूरत कहां रह गई है?
दुरुस्त कहा, आनंद भाई।
(स्रोत-एफबी)