पंकज शुक्ला
अमेठी में दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान लीडिंग अखबार हैं। पर, इनका कोई भी पत्रकार गांवों में जाकर काम करने के खिलाफ़ है। सबको दफ्तर में बैठे बैठे जानकारी चाहिए, फोन पर।
शक़ होता है कि पत्रकारिता में अब धार बची भी है कि नहीं। पश्चिमद्वारा जैसे गांव में दो दो साल तक ट्रॉन्सफॉर्मर खराब रहता है और स्थानीय पत्रकार सांसद से सवाल तक नहीं पूछते।
वैसे जानकारी के लिए बता दें कि अमेठी आदतन राजसी शहर है। सुबह 9 बजे से पहले यहां कोई काम ढंग से शुरू नहीं होता। शाम के 7 बजते बजते इंसान फिर आराम की मुद्रा में आने लगता है।
(स्रोत-एफबी)
Alok Kumar अमेठी को आलसी और पत्रकारों को धार हीन बताकर कवि महोदय का बेड़ा पार कैसे करेंगे, पंकज भाई।
Dinker Srivastava पत्रकारों की बदौलत जितवाने का इरादा लेके आये हैं क्या…? कम संसाधनों में जितना यहाँ के पत्रकार काम कर लेते हैं उतना दिल्ली नोयडा में ए.सी. में बैठने वाले क्या करेंगे सिवाय अपने अधिनास्तों पर रोब झाड़ने के, स्थानीय पत्रकार क्या करते हैं इस बहस में मत पढिये…रही जनता जिसका वोट आपको चाहिए आपके मुताबिक़ वो आलसी है….देखिएगा कहीं वोट देने में आलस न कर जाये…
Akshay Jha इसमें एक बात और जोड़ी जानी चाहिए…. जो भी अखबार वहां हैं. वो गांव के सुदूर इलाके में जा कर रिपोर्टिंग करने के लिए क्या वक्त और रकम दोनों अदा करने को तैयार है… मौजूद किसी स्थानीय पत्रकार से उसकी सैलेरी पूछी जाय.