बहुमुखी प्रतिभा के धनी पत्रकार आलोक श्रीवास्तव को एक और सम्मान मिला है. इस बार उन्हें लखनऊ के बाराबंकी में ‘मजाज़-सम्मान’ मिला है. आलोक का नाम पहली बार सुर्ख़ियों में तब आया जब वर्ष 2007 में उन्हें अपने पहले ग़ज़ल-संग्रह ‘आमीन’ के लिए रूस का प्रतिष्ठित ‘अंतर्राष्ट्रीय पुश्किन सम्मान’ मिला. उसके मप्र साहित्य अकादेमी का दुष्यंत कुमार पुरस्कार, और ‘परम्परा ऋतुराज सम्मान’ भी हासिल हो चुका है। इसके अलावा अमेरिका में ‘अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मान’ से वे सम्मानित हो चुके हैं.
पेशे से टीवी पत्रकार आलोक श्रीवास्तव लगभग दो दशक से साहित्यिक-लेखन में सक्रिए हैं। वे हिंदी-पट्टी के ऐसे इकलौते युवा ग़ज़लकार हैं जिनकी ग़ज़लों-नज़्मों को ग़ज़ल सम्राट स्व. जगजीत सिंह, पंकज उधास, तलत अज़ीज़, शुभा मुदगल से लेकर महानायक अमिताभ बच्चन तक ने अपना स्वर दिया है। हाल ही में उनका एक वीडियो एल्बम भी आया जिसकी काफी तारीफ़ हुई.
मजाज़ सम्मान मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त्त करते हुए आलोक सोशल मीडिया पर लिखते हैं –
इस बीच लखनऊ (बाराबंकी) में ‘मजाज़-सम्मान’ मिल गया. लेकिन अब तक हिचक यही है कि- ‘कहाँ मैं अदना ग़ज़लकार और कहाँ ‘मजाज़ लखनवी’ जैसे बड़े शायर के नाम से मंसूब सम्मान !? कहीं कोई मेल ही नहीं !? लेकिन मेरे जीवने से जुड़ी दो शख़्सियात. दोनों ही मेरे लिए परम् आदरणीय. जिनका इशारा भी आदेश के समान है. आदरणीय अग्रज Hemant Sharma जी और दूसरे जाने-माने समाजवादी विचारक, समाजसेवी श्रद्धेय Rajnath Sharma ji. इनका आदेश टालना, मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था…
लेकिन अब, इन दोनों आदरणीयों से और आप सबसे वही कहूँगा जो हमेशा कहता आया हूँ- “इस क़द के, ऐसे बड़े शायर, जिनको पढ़ते-पढ़ते यहाँ तक आया हूँ. इन जैसों के नाम से मंसूब सम्मान स्वीकारने की न तो मेरी उम्र है, न शायरी और न हैसियत. फिर भी आपने इस सम्मान के लिए मुझे चुना, यह सिर्फ़ और सिर्फ़ आपका बड़प्पन है. मैं आपके इस बड़प्पन के समक्ष नतमस्तक हूँ. बस अब इतनी दुआएँ और दीजिए कि मैं कभी एक पंक्ति भी ऐसी रच सकूँ जो ‘मजाज़ साहब’ या उन जैसे किसी बड़े शायर के पैर की जूती के पास भी कहीं रखी जा सके. तभी सृजन धन्य होगा.”
आपका ही आलोक