15 मार्च 2012 प्रदेश की राजनीति में बदलाव की वाहक बनी समाजवादी पार्टी ने अपने युवराज अखिलेश यादव के नेतृत्व में एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया। इस एक साल के कार्यकाल में जहाँ सरकार के खाते में कुछ उपलब्धियाँ है तो वही कुछ कमियाँ भी है। उपलब्धि ये है कि विधानसभा चुनाव के समय जनता से किये अपने हर वायदे को लगभग सपा सरकार ने पूरा किया वो चाहे बेरोजगारी भत्ता रहा हो या फिर कन्या विद्याधन या फिर लैपटाप वितरण। हर मामले में इस सरकार ने अपना वायदा पूरा किया। सिवाय कानून व्यवस्था के मामले में। कानून व्यवस्था के मुद्दे पर ये सरकार पूरी तरीके से फेल रही।
हालाँकि ऐसा नहीं है कि युवा मुख्यमंत्री ने कानून व्यवस्था को बेहतर करने के प्रति कदम उठाने की कोशिश नहीं की। निश्चित रूप से उन्होंने कुछ कदम उठाने की कोशिश की पर ये कोशिश सियासत की जमीन पर आकर थम गयी । जब भी युवा मुख्यमंत्री ने अखिलेश ने कानून व्यवस्था की बेहतरी के लिए कोई कदम उठाना चाहा सियासत की मजबूरियों ने उनका रास्ता रोक लिया। वो चाहे पंडित सिंह का मामला रहा हो या फिर राजा भैया का या फिर एक साल के कार्यकाल में हुए विभिन्न सांप्रदायिक दंगो का। हर जगह कानून व्यवस्था पर सियासत भरी पड़ी जिसका नतीजा ये निकला एक साल के कार्यकाल में ही कानून वयवस्था जैसी गंभीर मुद्दे पर अखिलेश विफल हो गयी और मुख्यमंत्री पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से ये आरोप लगने लगे कि मुख्यमंत्री तो अखिलेश है पर सरकार तो कोई और चला रहा है।
इसलिए अब आवश्यक है कि मुख्यमंत्री अखिलेश सियासत की मजबूरियों से उप्पर उठकर कानून व्यवस्था के मुद्दे पर कुछ सख्त कदम उठाये क्योकि प्रदेश सरकार द्वारा कराये जा रहे विकास कार्यो का प्रभाव जनता पर तब पड़ेगा जब सपा सरकार खुद अपनी उपलब्धियों को जनता के बीच बताएगी पर कानून व्यवस्था एक ऐसा विषय है जिसको जनता खुद महसूस करती है। और शायद यही कारण है कि लाख कमियों के बावजूद जनता पूर्वर्ती माया सरकार को इस सरकार से बेहतर बता रही है। सियासत की पकी खिलाडी होने के नाते मायावती जनता की इस भावना को अच्छी तरीके से समझती थी। वो जानती थी कि अगर कानून व्यवस्था की स्थिति मजबूत रहेगी तो विपक्ष सीधा सीधा उनकी सरकार को कटघरे में नहीं खड़ा कर पायेगा।
अब मायावती की इसी समझ को अखिलेश को समझना होगा। और कानून व्यवस्था की बद से बदतर होती स्थिति को सियासत की मजबूरियों से उप्पर ले जाकर ठीक करना होगा।
अभी लोकसभा चुनाव के हिसाब से लगभग एक साल का और विधानसभा चुनाव के हिसाब से चार साल का समय मुख्यमंत्री अखिलेश के पास खुद को साबित करने का है कि सपा सरकार हर मायने में पूर्वर्ती माया सरकार बेहतर है। गर वो ये साबित कर ले गए तो ठीक वर्ना आने वाले चुनाव में सपा का ठन ठन गोपाला ही होना है वो चाहे लोकसभा का चुनाव हो या फिर विधानसभा का।
अनुराग मिश्र
स्वतंत्र पत्रकार
लखनऊ
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