अजीत अंजुम का शो ‘सबसे बड़ा सवाल’ सुपरहिट

अजीत अंजुम अतीत में न्यूज़ इंडस्ट्री को कई हिट और टीआरपी बटोरू कार्यक्रम दे चुके हैं. लेकिन अब उनकी पहचान बदल रही है. अब उनकी पहचान ज़ोरदार बहस करने वाले ‘एंकर’ की बन रही है. पिछले कुछ महीनों से वे न्यूज़24 पर ‘सबसे बड़ा सवाल’ कार्यक्रम को होस्ट कर रहे हैं और अब यह शो सुपरहिट हो गया है. यह हम नहीं कह रहे बल्कि टेलीविजन रेटिंग कहती है. ‘सबसे बड़ा सवाल’ अपने टाइम बैंड का सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्यक्रम बन गया है. इस सप्ताह की रेटिंग में भी तीन दिन ‘सबसे बड़ा सवाल’ अपने टाइम बैंड में नंबर वन पर रहा. जाहिर है कि न्यूज24 के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम का सवाल दर्शकों को रास आ रहा है. इस संबंध में अजीत अंजुम ने अपने वॉल पर अपने एंकरिंग से जुड़ी दिक्कतों आदि का जिक्र करते हुए शो की सफलता पर अपनी खुशी प्रकट की है. मीडिया खबर के पाठकों  के  लिए उसे हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं.  (मॉडरेटर)

अजीत अंजुम,प्रबंध संपादक,न्यूज़24

अजीत अंजुम - बहस का संचालन करते
अजीत अंजुम – बहस का संचालन करते

आप में कुछ लोगों को बुरा लगे तो लगे. आज जरा अपनी और अपने कार्यक्रम की तारीफ कर लूं . न्यूज 24 पर हर शाम सात बजे प्रसारित होने वाला डिबेट शो ‘सबसे बड़ा सवाल’ अपने टाइम बैंड का सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्यक्रम बन गया है . इस सप्ताह की रेटिंग में भी तीन दिन सबसे बड़ा सवाल अपने टाइम बैंड में नंबर वन है ( सभी चैनलों से आगे ) . पिछले सप्ताह भी दो दिन नंबर वन था . ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है . चार महीने तक लगातार अच्छे नतीजे आने के बाद लगा कि आज अपनी , अपने टीम की और अपने शो की बात की जाए . सोमवार से शुक्रवार तक ये डिबेट मैं न्यूज 24 पर करता हूं . कई बार ऐसा भी हुआ कि अपने टाइम बैंड में 28 फीसदी चैनल शेयर भी इस डिबेट शो को मिला है . सबसे बड़ा सवाल की एंकरिंग शुरू करने से पहले मैं डरता था कि अगर रेटिंग वेटिंग नहीं आई तो ? टीवी की दुनिया में सही या ग़लत पैमाना तो है ही .शुरु में दो तीन सप्ताह तो हमें लगा कि लप झप में लोग इसे देख ले रहे हैं लेकिन चार महीने बाद अब मैं कह सकता हूँ कि लोग इस कार्यक्रम को देख रहे हैं.

sabse bada sawal 7 pmमैं स्वभाव से थोड़ा आक्रमक हूं . आवाज भी थोड़ी ऊंची है . तो कई बार मेरे कुछ साथी कहते हैं कि आप दूसरों को कम बोलने देते हैं . कुछ लोग कहते हैं कि आप ज्यादा हावी होने की कोशिश करते हैं . कुछ लोग कहते है कि आप बात बहुत काटते हैं और खुद ज्यादा बोलते हैं . कुछ कहते हैं कि आप लंबे सवाल करते हैं और जवाब सुनने का सब्र नहीं है आपको ( ऐसे कमेंट फेसबुक पर आते रहते हैं ) लेकिन संत ,शादाब ,राजीव रंजन और अरुण पांडेय समेत तमाम साथी कहते रहे कि आप अपने ढंग से शो करते रहिए और सबकी सुनते रहिए . मुझे भी लगा कि अब अपनी जो आदत और अंदाज है , उसे बहुत बदल तो सकते नहीं . सो , मैं अपनी समझ और अपने मौलिक स्वभाव के हिसाब से डिबेट करता हूं . फिर भी अगर लोग इतना पसंद कर रहे हैं तो सबका शुक्रिया . मैं 18 सालों से टीवी मीडिया में हूं . कभी इस तरह से टीवी पर आने की ख्वाहिश नहीं रही . गाहे – बगाहे साथियों के कहने पर बतौर मेहमान स्टूडियो में बैठकर बहसों में हिस्सा लेता रहा . वो भी कई बार काफी आना-कानी के बाद. सुप्रिय प्रसाद ( अब आजतक के एडिटर ) जब हमारे साथ थे , तब सुप्रिय ने अक्सर हमें स्क्रीन पर आने को प्रेरित किया . उस समय के और भी साथियों ने कहा था कि आपको आना चाहिए . फिर भी पता नहीं क्यों मुझे स्क्रीन पर आना एक तनाव को आमंत्रित करने जैसा लगता रहा और कई सालों तक भीतर से कभी इच्छा ही नहीं पनपी .

न्यूज 24 पर करीब चार महीने से इस डिबेट शो की मैं एंकरिंग कर रहा हं . चार महीनों में सबसे बड़ा सवाल को जो कामयाबी मिली है , वो मेरी हौसला अफ़्जाई के लिए काफ़ी है.मैं तो अभी भी डिबेट शुरु होने से पहले काफी दबाव में रहता हूं . बाकी एंकर्स की तरह निश्चिंत और कान्फिडेंट नहीं रह पाता. टेंशनात्मक होकर ही स्टूडियो में जाता हूं . गेस्ट की चिंता , पैकेज की चिंता , टॉप बैंड- लोअर बैंड से लेकर बाकी उलझनों के बीच स्क्रीन पर अवतरित हो जाता हूं .फिर भी इसे देखा जा रहा है तो मेरे लिए खुशी की बात तो है ही.

न्यूज रुम के मेरे साथी संत प्रसाद राय,राजीव रंजन सिंह ,शादाब, प्रियदर्शन, अरुण पांडेय, बजरंग झा समेत कई साथियों ने समय समय पर मेरी हौसला आफजाई की है . आए दिन शो से ठीक एक दो घंटे पहले मैं एंकरिंग न करने का बहाना खोजने लगता हूं तो तब यही लोग हैं जो मुझे ठेलकर स्टूडियो भेजते हैं . अरुण पांडेय , संत प्रसाद राय और राजीव रंजन तो शुरु में मुझे हर रोज डोज देते थे कि आप दायें – बायें मत करिए . आपको करना है तो करना है , वरना मैं कब का सरेंडर कर देता कि ये झंझट और टेंशन मेरे वश की बात नहीं . मेरी एक बुरी आदत है कि जो नहीं हुआ , उसकी तरफ ज्यादा अंटेंशन देने की . ये आदत मुझे स्टूडियो में भी चैन से रहने नहीं देती . ये लोग मुझे समझाते रहे कि आप बाकी चीजों से ध्यान हटाकर सात बजे सिर्फ शो पर फोकस कीजिए और मैं था कि ये क्यों नहीं हुआ और वो क्यों नहीं हुआ में ज्यादा उलझता था .

शशि शेखर मिश्रा रिपीट को एडिट करने में मशक्कत करते हैं .संत पहला पैकेज लिखते हैं और उनके वीओ से पैकेज बहुत असरदार हो जाता है . पीसीआर में शादाब और अख़लाक़ की मौजूदगी हमेशा आश्वस्त करती है . स्टूडियो में कैमरा इंचार्ज जितेन्द्र अवस्थी मेरे लिए डायरेक्टर की तरह होते हैं . विवेक गुप्ता का प्रोमो और ग्राफिक्स के भागते रहना. कभी कभी मेरा कोप भाजन बनकर भी हंसते हुए काम करना मैं कैसे भूल सकता हूं .

गेस्ट रिलेशन में रजनी से लेकर असाइनमेंट के शैलेश और रिसर्च के शशि शेखर और प्रवीण प्रभात तक सबका आभार. और हां , स्क्रीन पर तो एंकर के तौर पर मैं दिखता हूं लेकिन टीम के बिना मैं क्या और सबसे बड़ा सवाल क्या ….मैं भी फुस्स और सबसे बड़ा सवाल भी फुस्स . कभी आपवादी और कांग्रेसी होने के आरोप भी लगा देते हैं सोशल नेटवर्किंग के भाई लोग. हालांकि मैं जानता हूं कि मैं क्या हूं . कोशिश जारी  (स्रोत-एफबी)

सबसे बड़ा सवाल का प्रोमो :

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