न्यूज़24 के मैनेजिंग एडिटर के पद से अजीत अंजुम ने पिछले दिनों इस्तीफा दे दिया. इसी के साथ बीएजी फिल्म्स के साथ उनका वर्षों पुराना संबंध भी टूट गया. अजीत अंजुम, बीएजी फिल्म्स के साथ तब से हैं जब यह एक छोटा प्रोडक्शन हाउस हुआ करता था. जाहिर है इस संस्थान से जुड़ी ढेरों यादें अजीत अंजुम के पास होगी. बीएजी से जुड़ी अपनी यादों के पिटारे में से कुछ यादों को अजीत अंजुम ने एफबी पर शेयर किया हैं. वे लिखते हैं :
19 साल कम नहीं होते किसी एक कंपनी में काम करते हुए
यादों के अलबम को पलटने का वक्त आ गया है . जिस कंपनी में मैंने 19 साल गुजारे , अच्छे – बुरे वक्त देखे , हर सफर का साक्षी भी रहा और कई बार सारथी भी , उस कंपनी से विदा ले रहा हूं . इस कपनी में रहते हुए दर्जनों चर्चित प्रोग्राम बनाए . तारीफें भी मिली , अवार्ड भी मिले और आलोचनाएं भी. संघर्ष से भी सामना हुआ और थोड़ी – बहुत कामयाबी भी मिली. 19 साल कम नहीं होते किसी एक कंपनी में काम करते हुए . कुछ तस्वीरें फेसबुक के ही अलबम से साझा कर रहा हूं , जो न्यूज 24 के लांच के वक्त की है . दिसंबर 2007 में न्यूज 24 हम सबने मिलकर लांच किया था . अच्छी टीम बनी थी . अच्छा काम भी हम सबने मिलकर किया . लेकिन वक्त के साथ सभी बिछड़े . अलग अलग संस्थानों के हिस्सा बने और आज भी हैं . इनमें से ज्यादातर लोग जहां भी हैं , शानदार काम कर रहे हैं . सुप्रिय प्रसाद जो न्यूज 24 के न्यूज डायरेक्टर थे , आज देश के नंबर वन चैनल आजतक के मैनेजिंग एडिटर हैं . अंजना कश्यप तेज तर्रार और तेवर वाले एंकर के तौर पर स्थापित हो चुकी है . मैं तो उसे हिन्दी का बेहतरीन एंकर मानता हूं . श्वेता सिंह पहले भी न्यूज 24 में कुछ ही महीने रही लेकिन यहां आने के जाने के बाद भी आजतक के सबसे चर्चित चेहरों में से एक है . सईद अंसारी तब स्टार न्यूज से न्यूज 24 आए थे , अब आजतक में हैं . पंद्रह साल जैसे ऊर्जावान दिखते थे , आज भी वही ऊर्जा कायम है . कई युवा चेहरे न्यूज 24 के जरिए अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए , उसमें अखिलेश आनंद प्रमुख हैं . बेहतरीन काम करने वाले प्रोडयूसर और रिपोर्टर भी इस टीम का हिस्सा थे . शादाब , मनीष कुमार , राकेश कायस्थ , विकास मिश्रा , अशोक कौशिक , बजरंग झा , देवांशु झा , कुमार विनोद , आर सी, शंभु झा , पशुपति शर्मा से लेकर रितेश श्रीवास्तव तक. धर्मेन्द्र द्विवेदी , अनुप पांडेय , जैगम इमाम , विवेक गुप्ता , विकास कौशिक, पुनीत शुक्ला , पंकज , राजीव से लेकर तमाम नए और ऊर्जावान प्रोडयूसर तक इस चैनल के हिस्सा बने . इसी तरह असाइनमेंट और रिपोर्टिंग की अच्छी टीम बनी थी . इनमें से कुछ आज भी हैं लेकिन ज्यादातर अलग अलग चैनलों में जा चुके हैं . पचासों नए लड़कों ने टीवी मीडिया का ककहरा यहीं से सीखा . अच्छा काम करने वालों की जमात में शुमार हुए और आज दूसरों में चैनलों में झंडा बुलंद कर रहे हैं . यूं ही कुछ बातें , कुछ कहानियां , कुछ घटनाएं याद आ रही हैं …लिखूंगा धीरे धीरे …
[box type=”info”]मालवीय नगर में बीएजी फिल्मस के छोटे से दफ्तर में ये मेरा पहला वर्क स्टेशन था . ये तस्वीर 1995 की है . तब मैं बतौर प्रोडयूसर कई कार्यक्रम प्रोडयूस किया करता था . अखबार में कुछ साल नौकरी करने के बाद बीएजी फिल्मस पहुंचा था . टीवी का उन दिनों बहुत क्रेज हुआ करता था . पुराने जमाने के कैमरे और एडिट मशीनों के साथ न जाने कितने कार्यक्रम बनाए. दिन में शूटिंग और रात भर एडिटिंग . एडिट मशीनों के पास ही कुछ खाना , नींद आने पर कुर्सी पर ही झपकी मारना , फिर मास्टरिंग करके टेप चैनलों तक पहुंचाना. सुबह दफ्तर में ही नहाना और फिर शूट पर निकल जाना . न जाने कितनी रातें , कितने दिन , कितने महीने …हमने यूं ही गुजार दिए ..तमाम साथी मिले . कुछ से हमने सीखा , कुछ ने हमसे सीखा . दूरदर्शन , जी इंडिया , एल टीवी , स्टार टीवी से लेकर पंजाबी चैनल तक के लिए कार्यक्रम हमने बनाए …[/box]
हर रास्ता किसी न किसी चौराहे की तरफ जाता है , जहां से दिशा बदलनी होती है
वैसे तो मैं कभी परदे का आदमी नहीं रहा. हमेशा परदे के पीछे ही काम किया . कभी – कभार सहयोगियों के कहने पर या मौके की जरुरत के हिसाब से न्यूज रुम या स्टूडियो से भाषण- वाषण दे दिया करता था . कभी कभार इंटरव्यू भी किए . लेकिन सब कुछ अनियमित ढंग से . दो ढाई साल पहले ‘ सबसे बड़ा सवाल ‘ के नाम से एक डिबेट शो शुरु किया लेकिन शाम होते होते शो एक टेंशन की शक्ल में मुझे इतना टेंशायमान कर देता था कि दो या तीन सप्ताह में छोड़ दिया. दिन भर चैनल का काम करने में इतना मशरुफ होता था कि अपने ही शो के लिए समय निकालना मुश्किल होता था . पिछले साल के आखिरी महीनों में मैंने फिर एंकरिंग शुरु की. तमाम कमियों के बावजूद बीते सात – आठ महीने में सबसे बड़ा सवाल की अलग पहचान बनी, उससे मेरी भी पहचान बनी . टीआरपी के डब्बे से भी रेटिंग का जिन्न निकलता रहा. कई बार अपने टाइम बैंड में ये शो नंबर वन भी रहा – सहयोगी-यार -दोस्त -परिचित – अपरिचित ( ट्वीटर वाले ) तमाम लोगों ने हौसला आफजाई की , मैं एंकरिंग के लिए जूझते – जूझते ये शो करता रहा . आदत के मुताबिक हर हफ्ते में एक – दो दिन एंकरिंग न करने के बहाने खोजता , लेकिन न्यूज रुम के साथी अरुण पांडेय, संत , शादाब, राजीव रंजन , प्रियदर्शन और विवेक गुप्ता से लेकर इस शो के लिए रिसर्च करने वाला इंटर्न सहयोगी प्रकाश भी ठेल – ठालकर मुझे एंकरिंग के लिए स्टूडियो भेजते रहे. इन सब के सहयोग और साझा कोशिशों से सबसे बड़ा सवाल की पहचान बनी . मैंने भी खुद को एक्सप्लोर किया . इस्तीफा देने के बाद तीन सप्ताह पहले से मैंने इस शो की एंकरिंग बंद की है और तब से न जाने कितने मैसेज मुझे ट्वीटर पर मिले , जो लोग किसी मुद्दे पर स्टैंड लेने की वजह से हर रोज मेरे कार्यक्रम के बाद मेरी उग्र आलोचना करते थे , वो भी अब मेरी वापसी को लेकर मुझसे सवाल पूछ रहे हैं . तो चलिए , इससे इतना तो मानकर खुश हो ही सकता हूं कि मैंने एंकर की भूमिका भी ठीक ठाक ही निभाई . पसंद – नापसंद तो चलता ही रहता है . सभी पसंद करें , जरुरी नहीं . इस शो को भी मिस करुंगा अब . लेकिन यही नियति है . हर रास्ता किसी न किसी चौराहे की तरफ जाता है , जहां से दिशा बदलनी होती है . तो मैं भी दिशा बदल रहा हूं .