कुमार कृष्णन
मुंगेर। आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र हिन्दी पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर थे। पांच दशक तक पत्रकारिता की सेवा कर सामाजिक सरोकार और मूल्यों को जिंदा रखा तथा कभी कलम को गिरवीं रखने का काम नहीं किया। उनका सरल व्यक्तित्व और आचरण हर किसी को आर्कषित करता था। यही कारण है कि आज मुंगेर उनके पत्रकारिता के क्षेत्र के अवदान को स्मरण करता है। मुंगेर के सूचना भवन के प्रशाल में उनकी दूसरी पुण्य तिथि पर स्मृति समारोह का आयोजन किया गया। इस आयोजन में बिहार योग भारती के वरिष्ठ सन्यासी स्वामी शंकरानंद, मुंगेर के जिलापदाधिकारी नरेन्द्र कुमार सिंह, पुलिस अधीक्षक नवीनचंद्र झा, सूचना जन संपर्क विभाग, बिहार के पूर्व उपनिदेशक तथा बिहार समाचार के पूर्व प्रधान संपादक डाॅ रामनिवास पांडेय, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हृदय नारायण झा, बरिष्ठ पत्रकार नरेशचंद्र राय सहित प्रवुद्ध लोगों ने उनके चित्र पर माल्यापर्ण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
आयोजन के दूसरे सत्र में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व और पत्रकारिता के जन सरोकार पर संगोष्ठी हुई। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए बिहार योग भारती, मुंगेर के वरिष्ठ सन्यासी स्वामी शंकरानंद ने कहा कि उनका व्यक्तित्व काफी सरल था। इस संदर्भ में उनसे जुड़े कई संस्मरणों को रखा और इस बात को रेखांकित किया कि किस तरह से उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से समाज को दिशा दी। उन्होंने कहा कि योग के संदर्भ में कई भ्रातिंया थी , जब उनकी भं्राति दूर हुई तो वे योगाश्रम के अभिन्न अंग बन गये। समारोह में मुंगेर के जिलापदाधिकारी नरेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि पत्रकारिता का काम समाज को दिशा देना है। आज जब नैतिक मूल्यों का हा्रस हो रहा है तो उस स्थिति मेें पत्रकारों का दायित्व बढ़ जाता है।पत्रकारों को स्वस्थ्य आलोचना करनी चाहिये। साथ ही इस बात का ख्याल रखना चाहिये कि सामाजिक ताना-वाना कायम रहे। आचार्य जी लोकप्रियता समारोह में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी से परिलक्षित होती है। उनका कारवां बढ़ता रहे।
वहस को आगे बढ़ाते हुए पुलिस अधीक्षक नवीनचंद्र झा ने कहा कि पत्रकारिता लोगों के विचार और मानसिकता बदलने का एक सशक्त औजार है। जैसा अघ्ययन करेंगे, वैसी विचारधारा होगी। देश में दो धाराएं चल रही है एक क्षद्म राष्ट्र्वाद का और दूसरी धारा साम्यवाद की। सही विचारधारा वह है जो लोगों को जोड़े। लोकतंात्रिक शासन प्रणाली में आचोचना का स्थान है, लेकिन आलोचना सत्य से परे हो तो वह लोगों को दिग्भ्रमित करने का काम करती है। सवालिया लहजे में उन्होंने कहा कि तथाकथित रूप में जिस मोटे सुर्खियों में फार्म हाउस में हत्या की खबर प्रकाशित की गयी, क्यों नहीं नक्सल प्रभावित भीमवांध में पुलिस कैंप खोले जाने और नागरिक प्रशासन की पहुॅंच को अहमियत दी गयी। किसी तथ्य को सनसनीखेज ढंग से प्रस्तुत करना बाजारवाद की देन है, इससे सतर्क रहने की आवश्यकता है। पत्रकारों को निरंतर अध्ययन करने की प्रवृति कायम रखना चाहिये, इससे नजरिये में वदलाव आये।
विषय प्रवेश कराते हुए पत्रकार कुमार कृष्णन ने कहा कि आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र ने पत्रकारिता किसी पत्रकारिता संस्थान में पढ़कर पत्रकारिता नहीं की। कुंभ की एक घटना ने उनकी संवेदना को झकझोरा और यहीं से उनकी पत्रकारिता का सफर शुरू हुआ। दैनिक नवराष्ट्र्, आर्यावर्त और आज से तो जुड़े थे, लेकिन अपनी पैनी दृष्टि के कारण राष्ट्र्ीय क्षितीज पर छाये रहे। सूचना एंव जनसंपर्क विभाग के पूर्व उपनिदेशक और बिहार समाचार के पूर्व प्रधानसंपादक डाॅ रामनिवास पांडेय ने कहा कि आचार्य मिश्र पत्रकारिता के शिखर पुरूष थे। इस संदर्भ में उनके द्वारा प्रकाशित अग्रसर के साहित्यिक सांस्कृतिक आंदोलन में अग्रणी भूमिका की चर्चा की। उन्होंने कहा कि अपनी पुस्तक ‘‘ यादों का आइना ’’ में जो रिर्पाेताज और संस्मरण हैं, वे हिन्दी साहित्य की अनमोल कृति हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हृदयनारायण मिश्र ने उन्हें विलक्षण प्रतिभा का घनी बताया। पत्रकार चंद्रशेखरम् ने कहा कि वे मुंगेर के सांस्कृतिक आंदोलन के अग्रदूत थे। हिन्दी गजल के सशक्त हस्ताक्षर अनिरूद्ध सिन्हा ने कहा कि वे पत्रकार के साथ-साथ समालोचक भी थे। राष्ट्र्भाषा पुरस्कार से सम्मनित शहंशाह आलम ने इन पंक्तियों-‘‘ सीना ताने कबसे खड़ा है, हौसला पर्वत का है गजब का ’’ के माध्यम से अपनी श्ऱद्धाजलि दी। इंदू मिश्रा ने कहा कि विपन्नता और आर्थिक तंगी के बीच भी उन्होंने कभी मूल्यों से समझौता नहीं किया। प्रकाशन के जोखिम और बाजारवाद की चुनौतियों का लगातार सामना किया। युवा पत्रकार प्रशांत ने कहा कि आचार्य मिश्र युवा पत्रकारों के लिये प्रेरणास्त्रोत हैं। पत्रकार अवधेश कुंवर ने उनसे जुड़े संस्मरणों को रखा और कहा कि उनकी साहित्यिक सोच पत्रकारिता को दिशा देती रही। शिक्षक नेता रामनरेश पांडेय ने उन्हें निर्भिक पत्रकार बताया। वहीं अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक महासंध के महासचिव नवलकिशोर सिंह ने कहा कि प्रखर लेखनी के माध्यम से उन्होंने जो पहचान कायम की, वह मुंगेर को गौरवान्वित करता है।
इस अवसर पर उमेशनंदन कुंवर, विजयेन्द्र राजवंधु, सुवोधसागर, बीरेन्द्र कुमार सिंह, जाकिर हुसैन संस्थान के निर्देशक निशिकंात राय, अरूण कुमार, इम्तियाज अर्शफी, राजभारती, विजय चैरासिया, सज्जन कुमार गर्ग, संजय कुमार, अभिषेक सोनी, सुनील जख्मी, घन्नामल, नरेश आनंद, पुनीत कुुमार सिंह सहित समाज के विभिन्न तवके के लोगों की उपस्थिति ने स्मृति समारोह को यादगार बनाया।