ओम थानवी, संपादक, जनसत्ता
एबीपी न्यूज के ‘घोषणापत्र’ का स्वरूप मोदी के साक्षात्कार में बदल गया, मुझे भी अच्छा नहीं लगा। हमेशा की तरह ज्यादा सवाली होते तो “बदले” हुए मोदी की और परीक्षा हो जाती। लेकिन कार्यक्रम में शाज़ी ज़मां की उपस्थिति का उल्लेख करना चाहता हूँ, जो सुखद थी। बल्कि उन्होंने तीखे सवाल पूछे और बगैर मुस्कराहट ओढ़े पूछे। !
अव्वल तो लोग मारक सवाल पूछते ही नहीं हैं, पूछें तो पहले ही मुस्कुराने लगते हैं (श्रेष्ठ उदहारण प्रभु चावला होंगे)। इससे पत्रकार की खिसियाहट ही जाहिर होती है। शाज़ी आँख में आँख डालकर मुखातिब होते हैं। मोदी उनसे सशंकित थे। सहज बनते थे, असहज लगते थे।
बाकी प्रश्नकर्ताओं को तो वे बांग्ला-मराठी की लल्लो भी दे गए। बहरहाल, शाज़ी ज़मां को अपना कोई “शो” (ऐसा ही कहते हैं आजकल) नियमित करना चाहिए। शोरमचाऊ तू-तू मैं-मैं के बीच जरूर वे कोई संजीदा और सार्थक संवाद देंगे। (बुलावों के बावजूद एबीपी न्यूज अक्सर जा नहीं जा पाता, इसलिए यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं!)