वेद उनियाल
इस चुनाव में यही लगा कि टीवी के कुछ राजनीतिक समीक्षकों को थोड़ा दौड़ धूप जरूर करनी चाहिए। लोगों के मन की थाह लेने चाहिए। 1960 -70 के जो आकड़े उनके पास हैं वे अब काम नहीं होते। न उनके चाहने से वोट स्विंग होते हैं , न उनकी चाहत से वोट सधे चले जाते हैं। लोग अब वोट की बाजीगरी में नहीं पड़ते। जो पसंद आया उसे वोट देते हैं। या नकार देते हैं।
दो महीने से अभय कुंमार दुबे एक ही बात कह रहे थे कि चाहे कुछ हो एनडीए 180 से ऊपर नहीं आने वाली। तन तन कर वो आप को दस से पंद्रह सीट दे रहे थे। एक बार तो नाराज हो गए कि जब जम्मू कश्मीर में भाजपा को तीन सीट देने की बात हो रही है, क्या इतने प्रत्याशी भी खड़े किए हैं। बात केवल अभय जी की नहीं। कुछ लोग एक सरकारी चैनल में बहस करते हुए लालू को अठारह सीट मिलने की बात कह रहे थे। कितना सतही था उनका आकंलन ।
सवाल यही है कि जब हम टीवी पर बहस करने बैठे तो किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता न बने। मन में किसी तरह का पूर्वाग्रह हो तभी आकंलन गलत हो जाते हैं। नुकसान यह होता है कि लोग भ्रमित होने लगते हैं। इन समीक्षा के बहाने मीडिया की भी मजाक बनती है।
(स्रोत-एफबी)
अभय कुमार दुबे जब भी बोलते है यह साफ़ हो जाता है कि वह आप पार्टी के समर्थक है / इसमे कोई बुराई भी नहीं है / पर जैसे आशुतोष ने पत्रकारिता छोड़ कर आप पार्टी के साथ काम किया अगर दुबे जी भी यह करते तो ठीक था / पता नहीं दुबे जी कियु जनता पार्टी के विरोधी है ? हो सकता है उन्हे बीजेपी कि नीतिया पसंद न आती हो कोई बात नहीं पर जिस तरह से उन्होने एक राजनैतिक पत्रकार का नकाब ओड कर आम आदमी पार्टी के लिये प्रचार किया वह न तो पत्रकारिता के लिये ठीक था न ही उन न्यूज़ चैनल के लिए जिन्होने लगातार दुबे जी और उन जैसे लगभग दस और विश्लेषक से भ्रान्ति पूर्ण विश्लेषण कर देश को गुमराह किया /हो सकता है यह विश्लेषक जमीनी तोर पर जुड़े हो पर लगातार मेट्रो चका चोंध मे रह कर इनकी सोच प्रवाहित हो रही है ./
यहां टीवी चैनेलो से सीधा सवाल यह है कि.
क्या यह गिने चुने विश्लेषक ही देश की राजनीती की समझ रखते है ?
क्या टीवी चैनल्स जो नेशनल टीवी होने का दावा करते है एनसीआर से आगे भी अपनी कोई पकड़ रखते है ?
कियो नहीं वे क्षेत्रीय अखबार जैसे अमर उजाला , दैनिक जागरण , दैनिक भास्कर , बंगाल पत्रिका , आदि अखबारों के लोकल संपादको से जिले वार
संपर्क नहीं करते जिन्हे अपने जिले की सही खबर का पता होता है ?
गलती इन टीवी विश्लेषकों की नहीं है गलती टीवी चैनेलो की है जो अपनी लोकप्रियता की आड़ मे यह भूल जाते है कि दर्शक आपके इस गलत
आचरण से दुखी है ///