ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार –र
हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमां क्यों हो?
मिर्ज़ा ग़ालिब ने यह तंज न नजीब जंग पर किया था, न भाजपा पर – न दिल्ली सरकार को काम न करने देने और ‘आप’ पार्टी के नेताओं के साथ अपराधियों जैसा बरताव करने वाले केंद्र सरकार के पुलिस तंत्र पर। पर लागू इन पर ख़ूब होता है।
क्या भाजपा में कोई यह अहसास रखने वाला नहीं कि अपनी ऐतिहासिक हार का ग़म लगातार इस पुलिसिया रंजिश में निकालने की क़वायद अंततः ‘आप’ पार्टी का ही भला करेगी?
दिल्ली में पंद्रह बरस कांग्रेस ने अपने बूते पर राज किया; भाजपा ‘आप’ वालों को दस साल का रुक्का मानो अपनी नादानियों में ही लिख दे रही है!
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