टीवी टुडे नेटवर्क के मालिक अरूण पुरी, जी मीडिया नेटवर्क के मालिक सुभाष चन्द्रा की तरह अदूरदर्शी और ठस्स मिजाज के नहीं हैं. वो मीडिया, मीडिया बिजनेस और चमचई इन तीनों में साफ-साफ फर्क जानते हैं. वो जानते हैं कि बाकी दो कम-ज्यादा होते रहेंगे लेकिन कारोबारी एक तरह से बना रहना चाहिए. करोड़ों रूपये का उनका मीडिया कारोबार सैलरी पर पल रहे दो-चार, दस मीडियाकर्मियों और स्क्रीन चेहरे का खिलौना नहीं है.दर्शकों का बड़ा समूह तटस्थ है और दिन-रात दिमागी विभाजन पसंद नहीं करता. ऐसे में एक तरह जी नेटवर्क आर्थिक मोर्चे पर जितनी बुरी तरह से हांफ रहा है, चैनल के एंकर दिन-रात उतनी ही ताकत से चिंघाड़ रहे हैं, सत्ता के विरूद्ध आवाजों को ललकार रहे हैं. अरूण पुरी अपने एंकरों को ऐसी सर्कस चलाने की अनुमति नहीं दे सकते.
वो ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि जब हमारे एंकरों, मीडियाकर्मियों की आंखों में लोकतंत्र के सपने के बजाय अपना बड़ा घर, बड़ी गाड़ी, विदेश यात्रा और सुरक्षित आर्थिक जीवन है तो चैनल के लिए उनसे किस तरह का काम लिया जा सकता है ? कैसे उनका इस्तेमाल करते हुए दर्शकों को लगातार भ्रम में रखा जा सकता है कि जिस बक्से या एलइडी स्क्रीन के आगे वो आंख गड़ाए बैठे हैं, वो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है.
5 जनवरी को जेएनयू कैंपस में जो सुनियोजित ढंग से गुंडागर्दी की गयी और छात्रों पर जानलेवा हमले किए गए, बुरी तरह कमरे में तोड़-फोड़ मचाते हुए उन्हें जख्मी किया गया, टीवी टुडे नेटवर्क ने कल उस पर स्टिंग ऑपरेशन जारी किया. मेरे बहुत परिचित जो कि आजतक से किसी भी तरह की पत्रकारिता की उम्मीद बहुत पहले छोड़ चुके हैं और यहां तक मानते हैं कि ये अपनी कवरेज, भाषा और कंटेंट के जरिए इस देश की लोकतांत्रिक जड़ों को कमजोर करता है, स्टिंग देखने के बाद थोड़े गड़बड़ा गए. उन्हें लगा कि चैनल पत्रकारिता की रहा पर लौट आया है. स्टार एंकर अंजना ओम कश्यप और राहुल कंवल उन्हें सैलरी के सिपाही के बजाय पत्रकार लगने लगे. इसका मतलब हुआ कि चैनल का काम हो गया. आजतक का शुरू से यही बिजनेस पैटर्न रहा है.
मैं टीवी टुडे नेटवर्क को इस देश का अकेला पेशेवर कॉर्पोरेट मीडिया मानता हूं. इस पर कभी विस्तार से लिखना होगा. फिलहाल ये कि ये नेटवर्क कभी भी पूरी तरह अपनी पुरानी ऑडिएंस का भरोसा नहीं तोड़ता. जब-जब वो सत्ता के चाटुकार के तौर पर कवरेज करता है, उसके तुरंत बाद ही ऐसी कोई कवरेज जरूर सामने रखता है जिससे कि ऑडिएंस इस भ्रम में रहे कि नेटवर्क सत्ता के खिलाफ जाकर भी नागरिकों के हितों की रक्षा करता है. वो अपने दर्शकों के हितों को ध्यान में रखता है.
नेटवर्क की ये रणनीति अब तक दर्शकों पर काम करती आयी है और इसका सबसे ज्यादा असर इस रूप में भी होता है कि जब ये सत्ता के आगे बिछ जाता है तब भी वो पत्रकारिता के दायरे की ही चीज लगती है और जब स्ट्रैटजी के तहत थोड़े वक्त के लिए उसके खिलाफ जाती है तब वो नागरिक के पक्ष में खड़ा नेटवर्क नज़र आता है. वो हमेशा अपने साथ निकास द्वार का विकल्प बनाए रखता है. प्रधानमंत्री की रैली को बिना कट और ब्रेक के लगातार प्रसारित करता है तो कन्हैया कुमार के भाषण को भी बिना रोक-टोक के जारी रखता है. ऐसे में आप चाहे जिस भी विचारधारा और पार्टी के समर्थक हों और चैनल पर आरोप लगाएं कि वो किसी खास का पक्ष लेता है, चैनल के पास इसका जवाब होगा. ये जवाब जी न्यूज, इंडिया टीवी और यहां तक कि एनडीटीवी तक के पास नहीं होगा.
आजतक-टीवी टुडे नेटवर्क को पता है कि वो जो कुछ भी प्रसारित कर रहा है, उससे ठीक उलट जाने की स्थिति कभी भी बन सकती है. पैसा और कारोबार इसी में है. उसका फॉर्मूला बहुत साफ है- आपकी जो भी विचारधारा रहे, प्राइम टाइम में थोड़े वक्त के लिए ही सही, आपको हमारे चैनल से होकर गुजरना होगा. जी न्यूज की रणनीति ऐसी नहीं है. यही कारण है कि वो पिछले छह साल से लगातार सत्ता की जी-हुजूरी में लगा है लेकिन धंधे के मैंदान में तेजी से पिछड़ रहा है, हांफ रहा है. दूसरा कि सत्ताधारियों को भी ये पता है कि जी न्यूज के बिछे रहने से कहीं ज्यादा असर आजतक के बिछने और फिर तनकर खड़े हो जाने में ज्यादा है. ऐसे में इस प्लेटफॉर्म से बात की जाय तो ज्यादा फायदेमंद होगा.
(मीडिया मामलों के जानकार विनीत कुमार के सोशल मीडिया वॉल से साभार)