आजतक चैनल के महंत मीडियाकर्मियों ने हमारी तरह मीडिया कक्षाओं में ये जरुर पढ़ा होगा और गर नहीं पढ़ा है तो टीवीटीएमआइ में पढ़ाया होगा कि रिपोर्टिंग में पैसे से कहीं ज्यादा आदमी कमाया जाता है..आप एक रिपोर्ट करने जाओ, आप दर्जनभर आदमी कमाकर वापस आते हो.
पानवाला, छोलेवाला,पार्किंगवाला, गलियों में घूमते लोग धीरे-धीरे आपके सोर्स बनते चले जाते हैं. आप दोबारा जब उन जगहों पर जाते हैं तो गांव-मोहल्ले के लोगों की तरह आपका हाल पूछते हैं. आपको लेकर आश्वस्त होने लगते हैं कि कुछ उन्नीस-बीस होगा तो आप उनकी बात, उनकी आवाज बनकर देश के सामने होंगे.
ये सच है कि वो हमारी-आपकी तरह मीडिया मंडी के सच को नहीं जानते कि डंके की चोट पर बात करनेवाला शख्स एक कार्पोरेट घराने के करोड़ों रुपये ठेलते ही डंके के बजाय डंडे की चोट पर बोलना शुरु कर देता है..लेकिन
वो इतना जरुर समझता है कि ये शख्स हमें कभी भी ऐसे संकट में नहीं डालेगा जिससे न केवल हमारा मीडिया से यकीन खत्म हो जाएगा बल्कि उन तमाम लोगों पर से भी भरोसा उठ जाएगा जो सरोकारी अंदाज में बात करते हैं. मीडिया में चकेले-बेलन की तरह धंधेबाज आ जाने से इसकी साख पहले से ही जाती रही है, अब मीडियाकर्मी व्यक्तिगत स्तर पर भी ये करने लगेगा तो उसकी रही सही साख का भी बाजा बजते देर नहीं लगेगी.
आखिर आजतक को स्टिंग चमकाने के लिए अपने सोर्स को स्क्रीन पर इस तरह ला खड़ा करने की क्या जरुरत पड़ी थी..मैं साफ समझ रहा हूं कि वो इंडिया न्यूज के आसाराम प्रकरण से बुरी तरह चोट खाया हुआ है..इसके लिए पहले तो उसने पुरानी स्टिंग चलायी और अब मुजफ्फरनगर दंगे में सोर्स की उघाड़बाजी..
आप इतना भी न गिरिए कि उठानेवाले के हाथ आप तक न पहुंचे..अपने इतिहास का थोड़ा तो ख्याल रखिए जिसमे रायटर का वो सर्वे शामिल है जिसमे कि दूरदर्शन के मुकाबले आजतक को करीब 12 फीसद ज्यादा विश्वसनीय बताया गया था..सब धो-पोछकर खत्म कर देंगे, जब साख ही नहीं रहेगी तो चैनल चलाकर क्या हवन करेंगे ?